शादी के बाद भी नहीं बदलेगी एससी-एसटी महिला की जाति: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट

शादी के बाद भी अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) की महिला की जाति नहीं बदलती. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, अंतरजातीय विवाह करने के बाद भी जाति वही रहती है. इस स्थिति में, फ़ॉर्म भरते समय पिता के नाम के साथ ही वही जानकारी देनी होती है. भारतीय कानून के मुताबिक, जाति बदलना संभव नहीं है.
भोपाल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि अगर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिला किसी ‘ऊंची’ जाति के व्यक्ति से शादी करती है, तब भी उसकी जाति नहीं बदलेगी। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति महिला के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता है या फिर उनसे कोई अन्य तरीके का बुरा बर्ताव करता है तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ ऐट्रोसिटी अगेंस्ट एससी-एसटी ऐक्ट 1989 के तहत केस चलेगा।
एक मामले में ऊंची जाति के पांच व्यक्तियों के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज किए जाने को कोर्ट ने सही ठहराया। इस मामले में ब्राह्मण पुरुष से शादी कर चुकी एक आदिवासी महिला को गाली देने के आरोपी पांच लोगों के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है।
इस मामले में जस्टिस सुनील कुमार पालो की बेंच ने ऐसे ही एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को कोट किया, जिसमें कहा गया था, एससी-एसटी समुदाय में जन्म लेने वाली महिला अगर किसी उंची जाति के व्यक्ति से शादी करती है तो वह स्वत: ही सिर्फ शादी के आधार पर पति की जाति की नहीं मानी जाएगी। इसलिए उसे अपने पति की जाति से नहीं जोड़ा जा सकता है। बचाव पक्ष ने इस मामले में दलील दी कि, शिकायतकर्ता रंजना उइके की जाति इस आधार पर निर्धारित होनी चाहिए कि फिलहाल उनकी पहचान क्या है? शादी के बाद उनकी पुरानी जाति छूट गई है। अब वह अपने पति की जाति का हिस्सा हो गईं इसलिए एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज ना किया जाए। उनके खिलाफ लिखाई गई एफआईआर को रद्द किया जाए।
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
इसी मामले में जस्टिस सुनील कुमार पालो की बेंच ने ऐसे ही एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को कोट किया, जिसमें कहा गया था, ‘एससी-एसटी समुदाय में जन्म लेने वाली महिला अगर किसी सवर्ण से शादी करती है तो वह स्वत: ही सिर्फ शादी के आधार पर पति की जाति की नहीं मानी जाएगी।’
बचाव पक्ष ने दलीली दी कि शिकायतकर्ता रंजना उइके की जाति इस आधार पर निर्धारित होनी चाहिए कि अब उनकी पहचानत क्या है। बचाव पक्ष के वकील ने दलील देते हुए कहा, ‘शादी के बाद वह अपने पति की जाति का हिस्सा हो गईं और पहले की जाति छूट गई इसलिए एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस ना हो और एफआईआर रद्द की जाए।’
इस दलील के जवाब में जस्टिस पालो ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि रंजना शादी के बाद भी अनुसूचित जनजाति से ही संबंध रखती हैं। रंजना ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनके पांच पड़ोसियों ने उनकी जाति को लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग किया था और उन्हें गाली दी थी।