ईरान की इस्लामिक सरकार पर किसका श्राप? अतीफेह रजबी सहलीह की दुखद कहानी

The sad story of Atefeh Rajabi Sahlih
The sad story of Atefeh Rajabi Sahlih

ईरान की इस्लामिक सरकार के शासनकाल में कई विवादास्पद और क्रूर घटनाएँ सामने आई हैं, लेकिन 16 वर्षीय मासूम लड़की अतीफेह रजबी सहलीह की फाँसी का मामला आज भी मानवाधिकार संगठनों और विश्व समुदाय के लिए एक दुखद और भयावह अध्याय बना हुआ है। इस घटना को न केवल ईरान की कठोर न्याय व्यवस्था का प्रतीक माना जाता है, बल्कि कुछ लोग इसे ईरान में लगातार अशांति और अस्थिरता का कारण भी मानते हैं। कहा जाता है कि अतीफेह की निर्दयता से दी गई सजा ने देश पर एक “श्राप” ला दिया, जिसके बाद से ईरान में शांति स्थापित नहीं हो सकी। यह लेख अतीफेह की कहानी, उसके जीवन, उसकी सजा, और इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर एक विस्तृत नजर डालता है।

अतीफेह रजबी सहलीह: एक मासूम का दुखद जीवन

अतीफेह रजबी सहलीह का जन्म 1986 में ईरान के नेकशहर (नक़्शहर) में हुआ था। वह एक साधारण परिवार से थीं, लेकिन उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था। उनके माता-पिता का तलाक हो चुका था, और उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली थी। अतीफेह अपने पिता के साथ रहती थीं, लेकिन पारिवारिक समस्याओं और सामाजिक दबावों ने उनके जीवन को और जटिल बना दिया। 16 साल की उम्र में, जब वह अपनी किशोरावस्था में थीं, उन्हें एक ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया, जिसने न केवल उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान ईरान की न्याय व्यवस्था की क्रूरता की ओर खींचा।

अतीफेह का अपराध: एक अस्पष्ट और विवादास्पद मामला

2002 में, अतीफेह को “नैतिकता के खिलाफ अपराध” और “अवैध संबंध” के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने एक विवाहित पुरुष के साथ संबंध बनाए थे। इस मामले में कई सवाल अनुत्तरित रहे। मानवाधिकार संगठनों, जैसे कि एमनेस्टी इंटरनेशनल, ने दावा किया कि अतीफेह को इस पुरुष द्वारा यौन शोषण का शिकार बनाया गया था, और वह स्वयं एक पीड़िता थीं। इसके बावजूद, ईरान की इस्लामिक न्याय व्यवस्था ने उन्हें अपराधी ठहराया।

अतीफेह की उम्र को लेकर भी विवाद था। ईरानी कानून के अनुसार, 15 साल से कम उम्र की लड़कियों को मौत की सजा नहीं दी जा सकती, लेकिन अतीफेह के जन्म प्रमाण पत्र में उनकी उम्र 16 साल दर्ज थी। हालांकि, उनके परिवार और कुछ कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि वह 16 साल से कम उम्र की थीं। इसके अलावा, अतीफेह की मानसिक स्थिति को लेकर भी सवाल उठे। उनके व्यवहार और बयानों से संकेत मिलता था कि वह मानसिक रूप से अस्थिर थीं, लेकिन अदालत ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

न्यायिक प्रक्रिया: एक तमाशा या क्रूरता की पराकाष्ठा?

अतीफेह का मुकदमा एक त्वरित और एकतरफा प्रक्रिया थी। उन्हें कोई उचित कानूनी सहायता नहीं दी गई, और उनके खिलाफ सबूत भी पर्याप्त नहीं थे। अदालत में उनके बयान और व्यवहार से यह स्पष्ट था कि वह अपनी स्थिति को पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं। कुछ गवाहों के अनुसार, अतीफेह ने अदालत में जज के साथ तीखी बहस की और अपनी बेगुनाही का दावा किया, लेकिन उनकी आवाज को दबा दिया गया।

अतीफेह को पहले कोड़े मारने की सजा दी गई, और फिर 2003 में उन्हें फाँसी की सजा सुना दी गई। यह सजा न केवल उनके कथित अपराध के लिए थी, बल्कि “सार्वजनिक नैतिकता को भ्रष्ट करने” और “न्यायपालिका का अपमान करने” के लिए भी थी। यह मामला इसलिए और विवादास्पद हो गया क्योंकि अतीफेह को नाबालिग होने के बावजूद वयस्क अपराधी के रूप में दंडित किया गया।

फाँसी का दिन: एक मासूम की क्रूर विदाई

6 अगस्त, 2003 को, अतीफेह को उनके गृहनगर नेकशहर में सार्वजनिक रूप से फाँसी दी गई। यह नजारा न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हृदयविदारक था। अतीफेह को एक क्रेन से लटकाया गया, और हजारों लोगों की भीड़ ने इस दृश्य को देखा। कुछ लोगों ने बताया कि अतीफेह ने अपनी आखिरी साँसों तक अपनी बेगुनाही का दावा किया। उनकी फाँसी की तस्वीरें और वीडियो बाद में इंटरनेट पर वायरल हुए, जिसने विश्व समुदाय को झकझोर कर रख दिया।

मानवाधिकार संगठनों ने इस फाँसी को “न्यायिक हत्या” करार दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि अतीफे की सजा “ईरानी सरकार की क्रूरता और मानवाधिकारों के उल्लंघन का जीवंत उदाहरण” थी। संयुक्त राष्ट्र और कई पश्चिमी देशों ने भी इस घटना की निंदा की।

अतीफेह की फाँसी के बाद ईरान: क्या यह एक श्राप था?

अतीफेह की फाँसी के बाद, कई लोग यह मानने लगे कि उनकी निर्दयता से दी गई सजा ने ईरान पर एक “श्राप” ला दिया। यह धारणा विशेष रूप से सोशल मीडिया पर प्रचलित हुई, जहाँ लोग यह कहते हैं कि अतीफेह की मौत के बाद से ईरान में शांति और स्थिरता गायब हो गई। हालाँकि यह एक अंधविश्वास हो सकता है, लेकिन इस धारणा को बल देने वाली कई घटनाएँ सामने आई हैं।

  1. आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता: 2003 के बाद से, ईरान ने कई आर्थिक संकटों का सामना किया। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, मुद्रास्फीति, और बेरोजगारी ने देश की जनता को परेशान किया। सामाजिक असंतोष भी बढ़ा, जिसके परिणामस्वरूप कई विरोध प्रदर्शन हुए।
  2. महसा अमीनी आंदोलन: 2022 में, महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद ईरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। इन प्रदर्शनों को “महसा अमीनी आंदोलन” के नाम से जाना गया, और इसमें महिलाओं ने विशेष रूप से हिजाब कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई। कई लोग इस आंदोलन को अतीफेह की सजा से जोड़कर देखते हैं, क्योंकि दोनों मामलों में महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अन्याय का मुद्दा प्रमुख था।
  3. अंतरराष्ट्रीय तनाव: अतीफेह की फाँसी के बाद, ईरान का कई पश्चिमी देशों और इज़राइल के साथ तनाव बढ़ता गया। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए हवाई हमलों ने इस तनाव को और बढ़ा दिया। कई लोग इसे ईरान की अस्थिरता का हिस्सा मानते हैं।
  4. आंतरिक हिंसा और दमन: ईरान की सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए क्रूर बल का उपयोग किया। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, 2022 में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को फाँसी दी गई, और कई अन्य को यातनाएँ दी गईं। यह क्रूरता अतीफेह के मामले की याद दिलाती है।

विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया: मानवाधिकारों पर सवाल

अतीफेह की फाँसी ने विश्व समुदाय को ईरान की इस्लामिक सरकार की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने के लिए मजबूर किया। कई मानवाधिकार संगठनों ने ईरान में मृत्युदंड की प्रथा की निंदा की। विशेष रूप से, नाबालिगों को फाँसी देने की प्रथा को “अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन” कहा गया। संयुक्त राष्ट्र ने 2003 में एक प्रस्ताव पारित कर ईरान से नाबालिगों को मृत्युदंड न देने की अपील की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ।

अतीफे की कहानी ने कई वृत्तचित्रों और लेखों को प्रेरित किया। उनकी तस्वीर, जिसमें वह फाँसी से पहले अपनी बेगुनाही की गुहार लगाती हुई दिखाई देती है, आज भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रतीक है। कई लोग उनकी स्मृति में हर साल 6 अगस्त को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

ईरान की इस्लामिक सरकार: क्या बदलेगा?

अतीफे की फाँसी और उसके बाद की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि ईरान की इस्लामिक सरकार को अपनी न्याय व्यवस्था और मानवाधिकारों के रिकॉर्ड को सुधारने की आवश्यकता है। हालाँकि, सरकार ने कुछ सुधारों की घोषणा की है, जैसे कि नाबालिगों को मृत्युदंड में छूट देना, लेकिन इन सुधारों का कार्यान्वयन धीमा रहा है।

वहीं, सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने ईरान की जनता, विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया है।। महस्सा अमीनी आंदोलन इसका एक उदाहरण है, जिसने दिखाया कि लोग अब और अधिक जागरूक और संगठित हैं।

निष्कर्ष: एक मासूम की सजा, एक देश की अशांति

अतीफे रजबी सहलह की कहानी केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है; यह ईरान की इस्लामिक सरकार की क्रूरता और अन्याय का प्रतीक है। उनकी फाँसी ने न केवल उनके परिवार को तोड़ा, बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। कुछ लोग इसे “शांति के अभाव” के रूप में देख सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि अतीफे की कहानी ने ईरान में बदलाव की माँग को और तेज़बूत किया है।

आज, जब हम अतीफे की स्मृति का सम्मान करते हैं, यह जरूरी है कि हम मानवाधिकारों के लिए लड़ाई को और तेज करें। उनकी मृत्यु व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। शायद, एक दिन, ईरान में ऐसी क्रूर सजाएँ इतिहास का हिस्सा बन जाएँगी, और अतीफे जैसी मासूमों को इंसाफ मिलेगा।

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