पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर Asim Munir की अमेरिका यात्रा में शर्मिंदगी: वाशिंगटन में विरोध, व्हाइट हाउस ने खारिज किया निमंत्रण का दावा

पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर Asim Munir की अमेरिका यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को शर्मिंदगी का सामना कराया। वाशिंगटन में प्रवासी पाकिस्तानियों ने उनके खिलाफ तीखा विरोध प्रदर्शन किया, उन्हें “इस्लामाबाद का कातिल” और “पाकिस्तानियों का हत्यारा” कहकर नारेबाजी की। यह विरोध इमरान खान की पार्टी पीटीआई के समर्थकों ने आयोजित किया, जो मुनीर की नीतियों और इमरान की गिरफ्तारी को लेकर नाराज हैं। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि मुनीर को आर्मी डे परेड में आमंत्रित नहीं किया गया, जिससे पाकिस्तानी मीडिया के दावों की पोल खुल गई।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल सैयद असीम मुनीर की हालिया अमेरिका यात्रा ने न केवल उनके लिए बल्कि पूरे पाकिस्तान के लिए एक अप्रत्याशित शर्मिंदगी का सबब बन गया। यह यात्रा, जो शुरू में रणनीतिक और सैन्य संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से प्रचारित की गई थी, जल्द ही विवादों और विरोध प्रदर्शनों की भेंट चढ़ गई। वाशिंगटन डीसी में प्रवासी पाकिस्तानियों ने उनके खिलाफ सड़कों पर उतरकर तीखा विरोध जताया, जिसने न केवल मुनीर की छवि को धक्का पहुंचाया बल्कि पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख को भी नुकसान पहुंचाया। इस घटना ने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति, विदेश नीति और क्षेत्रीय समीकरणों पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। आइए, इस पूरे प्रकरण को विस्तार से समझते हैं।
यात्रा का उद्देश्य और शुरुआती दावे
जनरल असीम मुनीर की अमेरिका यात्रा की घोषणा ने शुरुआत में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में हलचल मचा दी थी। पाकिस्तानी मीडिया और कुछ सूत्रों ने दावा किया था कि मुनीर को 14 जून 2025 को वाशिंगटन डीसी में आयोजित अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ समारोह (आर्मी डे परेड) में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। इस दावे को पाकिस्तान में सत्तारूढ़ गठबंधन और सेना के समर्थकों ने बड़े गर्व के साथ प्रचारित किया, यह सुझाव देते हुए कि यह निमंत्रण अमेरिका-पाकिस्तान सैन्य संबंधों में एक नई गर्मजोशी का प्रतीक है। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने व्यक्तिगत रूप से मुनीर को आमंत्रित किया था, और इस यात्रा के दौरान अफगानिस्तान और भारत को निशाना बनाने वाले आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर चर्चा होने की संभावना थी।
इसके अलावा, कुछ विश्लेषकों ने इसे अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा बताया, जिसमें वह चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए पाकिस्तान को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में गहरा जुड़ाव लंबे समय से अमेरिका के लिए चिंता का विषय रहा है। इसीलिए, मुनीर की यात्रा को एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान को अमेरिका के करीब लाना और क्षेत्रीय समीकरणों में संतुलन बनाना था।
व्हाइट हाउस का खंडन और भ्रामक प्रचार का पर्दाफाश
हालांकि, यह सारा प्रचार जल्द ही धराशायी हो गया जब व्हाइट हाउस ने स्पष्ट रूप से इन दावों का खंडन कर दिया। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बयान जारी कर कहा, “यह खबर पूरी तरह गलत है। किसी भी विदेशी सैन्य नेता को इस परेड के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है।” इस बयान ने पाकिस्तानी मीडिया और सरकार के उन दावों की पोल खोल दी, जिनमें कहा गया था कि मुनीर को अमेरिकी सेना के 250वें स्थापना दिवस समारोह में सम्मानित अतिथि के रूप में बुलाया गया था। यह समारोह, जो 14 जून को आयोजित हुआ, संयोगवश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 79वें जन्मदिन के साथ भी मेल खाता था। परेड में 6,600 सैनिक, 150 सैन्य वाहन, 50 हेलीकॉप्टर, और अन्य सैन्य प्रदर्शन शामिल थे, लेकिन इसमें किसी भी विदेशी सैन्य नेता की उपस्थिति नहीं थी।
व्हाइट हाउस के इस खंडन ने पाकिस्तान के प्रचार तंत्र को न केवल शर्मिंदगी में डाला, बल्कि यह भी उजागर किया कि कैसे पाकिस्तानी सेना और सरकार ने अपनी जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने की कोशिश की। भारतीय पत्रकार अदित्य राज कौल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस झूठ का खुलासा करते हुए लिखा कि पाकिस्तानी मीडिया ने जानबूझकर भ्रामक खबरें फैलाईं, जिसे भारत में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। यह घटना न केवल पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे गलत सूचनाओं का उपयोग अपनी छवि चमकाने के लिए किया जा सकता है।
प्रवासी पाकिस्तानियों का तीखा विरोध Asim Munir
मुनीर की यात्रा का सबसे बड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब वाशिंगटन डीसी में प्रवासी पाकिस्तानियों ने उनके खिलाफ सड़कों पर उतरकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी, जो मुख्य रूप से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के समर्थक थे, ने मुनीर को “इस्लामाबाद का कातिल”, “पाकिस्तानियों का हत्यारा”, और “मास मर्डरर” जैसे अपशब्दों से संबोधित किया। वाशिंगटन की सड़कों पर उनके काफिले के होटल के बाहर जुटे प्रदर्शनकारियों ने “हमें तानाशाही नहीं, लोकतंत्र चाहिए” जैसे नारे लगाए।
इन प्रदर्शनों का आयोजन पीटीआई की अमेरिकी शाखा ने किया था, जिसने पहले ही मुनीर की यात्रा के खिलाफ विरोध की योजना बनाई थी। प्रदर्शनकारियों का मुख्य गुस्सा इमरान खान की गिरफ्तारी और पाकिस्तान में सेना की कथित तानाशाही के खिलाफ था। उनका आरोप था कि मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान एक “सैन्य राज्य” बन चुका है, जहां जनता की आवाज को दबाया जा रहा है। कुछ प्रदर्शनकारियों ने डिजिटल वैन पर मुनीर के खिलाफ विज्ञापन भी लगाए, जिसमें उन्हें “इस्लामाबाद का कसाई” और “धोखा देने वाला जनरल” कहा गया।
यह विरोध इतना तीव्र था कि सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में प्रदर्शनकारी मुनीर के खिलाफ नारेबाजी करते और उनके पोस्टर जलाते नजर आए। इस घटना ने मुनीर की व्यक्तिगत छवि को तो नुकसान पहुंचाया ही, साथ ही पाकिस्तान की सेना और सरकार की अंतरराष्ट्रीय साख को भी गहरा धक्का लगा। यह पहली बार नहीं था जब मुनीर को इस तरह के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अमेरिका जैसे वैश्विक मंच पर यह शर्मिंदगी पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई।

भारत-पाक तनाव और ऑपरेशन सिंदूर का संदर्भ
मुनीर की इस यात्रा का समय भी बेहद संवेदनशील था। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले, जिसमें 25 पर्यटकों समेत 26 लोगों की मौत हो गई थी, ने भारत-पाकिस्तान तनाव को चरम पर पहुंचा दिया था। भारत ने इस हमले के जवाब में 6-7 मई को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए। इन हमलों ने पाकिस्तान को बैकफुट पर ला दिया, और मुनीर की सैन्य रणनीति पर सवाल उठने लगे।
मुनीर ने इस हमले से पहले कश्मीर को लेकर एक भड़काऊ बयान दिया था, जिसमें उन्होंने भारत की “नई सामान्य स्थिति” (New Normal) की आलोचना की थी। उन्होंने दावा किया था कि भारत मनमर्जी से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करता है और आतंकवाद के खिलाफ अपनी सैन्य कार्रवाइयों को जायज ठहराता है। इस बयान ने भारत में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर आतंकी पाकिस्तान में गहराई में हैं, तो भारत भी वहां गहराई में जाएगा।
इस संदर्भ में, मुनीर की अमेरिका यात्रा को भारत ने संदेह की नजर से देखा। कुछ भारतीय विश्लेषकों और राजनेताओं, जैसे कांग्रेस नेता जयराम रमेश, ने इसे भारत के लिए “कूटनीतिक झटका” करार दिया, हालांकि बीजेपी ने इन दावों को खारिज करते हुए इसे पाकिस्तानी प्रचार का हिस्सा बताया। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि कांग्रेस ने पाकिस्तान के जाल में फंसकर गलत सूचनाएं फैलाईं, और व्हाइट हाउस के खंडन ने सच्चाई को सामने ला दिया।
ईरान-इजरायल संघर्ष और पाकिस्तान की दोहरी नीति
मुनीर की यात्रा को और जटिल बनाने वाला एक अन्य कारक था ईरान-इजरायल संघर्ष। पाकिस्तान ने इस संघर्ष में ईरान का समर्थन किया, जबकि अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा रहा। दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन ने कहा कि ऐसे समय में जब अमेरिका इजरायल का मजबूत समर्थन कर रहा है, मुनीर का वाशिंगटन में होना कई असहज बातचीत को जन्म दे सकता है। पाकिस्तान की इस दोहरी नीति—जिसमें वह एक तरफ अमेरिका के साथ संबंध सुधारना चाहता है और दूसरी तरफ ईरान के साथ दोस्ताना रिश्ते बनाए रखता है—ने मुनीर की यात्रा को और विवादास्पद बना दिया।
पाकिस्तान की इस रणनीति ने अमेरिका में भी सवाल खड़े किए। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका पाकिस्तान से भारत और अफगानिस्तान को निशाना बनाने वाले आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की उम्मीद कर रहा था, लेकिन पाकिस्तान की कथित “तटस्थता” और चीन के साथ उसकी नजदीकियों ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया।
इमरान खान का कारक और आंतरिक अस्थिरता
पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में इमरान खान की गिरफ्तारी और उनकी पार्टी पीटीआई की सक्रियता ने भी मुनीर की यात्रा पर गहरा प्रभाव डाला। इमरान खान, जो 2022 से जेल में बंद हैं, के समर्थकों ने मुनीर को उनकी गिरफ्तारी और सैन्य शासन के लिए जिम्मेदार ठहराया। अमेरिका में पीटीआई समर्थकों ने मुनीर के खिलाफ न केवल सड़कों पर प्रदर्शन किए, बल्कि सोशल मीडिया पर भी #MunirOut जैसे हैशटैग के साथ उनकी आलोचना की।
पाकिस्तान में भी कुछ जूनियर अधिकारियों और रिटायर्ड जनरलों ने मुनीर से इस्तीफे की मांग की है, यह आरोप लगाते हुए कि उनके नेतृत्व में सेना का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि पहलगाम हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई से डरकर मुनीर और उनके परिवार ने देश छोड़ दिया था या रावलपिंडी में एक बंकर में छिप गए थे। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार ने इन अटकलों को खारिज करते हुए मुनीर की उपस्थिति की पुष्टि के लिए तस्वीरें जारी कीं।
भारत की प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय प्रभाव
भारत ने मुनीर की यात्रा और उसके आसपास के विवादों पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस पर गलत सूचनाएं फैलाने का आरोप लगाया। भारत ने हमेशा कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय माना है और अमेरिका की मध्यस्थता की किसी भी संभावना को खारिज किया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की “नई सामान्य स्थिति”—जिसमें वह आतंकवाद के खिलाफ सीधे सैन्य कार्रवाई करता है—ने पाकिस्तान को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए मजबूर किया है।
निष्कर्ष
जनरल असीम मुनीर की अमेरिका यात्रा, जो शुरू में एक राजनयिक और रणनीतिक जीत के रूप में प्रचारित की गई थी, अंततः पाकिस्तान के लिए एक शर्मिंदगी बनकर रह गई। व्हाइट हाउस के खंडन ने पाकिस्तानी मीडिया के झूठे दावों को उजागर किया, जबकि प्रवासी पाकिस्तानियों के विरोध ने मुनीर की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। यह घटना न केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता को दर्शाती है, बल्कि उसकी विदेश नीति की कमजोरियों और क्षेत्रीय समीकरणों में उसकी जटिल स्थिति को भी उजागर करती है। मुनीर की यह यात्रा एक बार फिर साबित करती है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर विश्वसनीयता और पारदर्शिता कितनी महत्वपूर्ण है।
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