ब्राह्मणो को पीट पीट कर मार डालने की आरोपी उत्तर प्रदेश पुलिस बनारस कचहरी में पिटी-Uttar Pradesh police officer beaten up in Varanasi court

वाराणसी – Uttar Pradesh police officer beaten up in Varanasi court उत्तर प्रदेश पुलिस की क्रूरता की एक और काली कहानी सामने आई है, जहां ब्राह्मण समुदाय के सदस्यों को पीट-पीटकर मार डालने के आरोपी उत्तर प्रदेश पुलिस के एक दरोगा को बनारस कचहरी में वकीलों ? / जनता ? द्वारा जमकर पीटा गया। यह घटना न केवल पुलिस की बेलगाम सत्ता को चुनौती देती है, बल्कि ब्राह्मण समाज में एक नई उम्मीद और हर्ष की लहर पैदा कर रही है।
वर्षों से दबे-कुचले ब्राह्मणों की हत्याओं पर चुप्पी साधने वाली व्यवस्था अब खुद अपनी औकात समझ रही है। लेकिन इस हर्ष के बीच दर्द की टीस भी है, क्योंकि ऐसी हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं – जैसे हाल ही में हमीरपुर जेल में अनिल द्विवेदी की हिरासत में मौत, जो ब्राह्मण समाज के घावों को और गहरा कर रही है।
बड़ागांव के दारोगा मिथिलेश प्रजापति (35) और एक सिपाही को कचहरी में गो अधिनियम का रिमांड पर्चा लेने मंगलवार को कचहरी आए थे। इस दौरान सिर्फ बड़ागांव थाने का दरोगा होने के नाम पर उनको वकीलों ? / जनता ? के एक समूह ने पीट दिया। जिसकी वजह से दारोगा गंभीर रूप से घायल हो गए। बीएचयू ट्रामा सेंटर में गंभीर हाल में ले जाने के बाद दारोगा का सीटी स्कैन कर इलाज शुरू किया गया।
बीएचयू में पहुंचने के बाद घायल दारोगा की स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों ने आईसीयू की जरूरत बताई है। इसके बाद दारोगा के लिए आइसीयू में बेड की व्यवस्था भी शुरू कर दी गई। वहीं कचहरी में दारोगा की वकीलों ? / जनता ? द्वारा पिटाई की जानकारी के बाद से ही वाराणसी पुलिस विभाग में रोष की स्थिति है। हालांकि ब्राह्मण समाज में एक नई उम्मीद और हर्ष की लहर पैदा कर रही है। स्थिति तनावपूर्ण लेकिन पुलिस के नियंत्रण में समूचा कचहरी परिक्षेत्र बना हुआ है। वहीं बार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि इस पूरे घटनाक्रम से बार का कोई संबंध नहीं है।
दारोगा के साथ- साथ बड़ागांव थाने के कोर्ट मुहर्रिर राणाप्रताप (28) भी गंभीर रूप से घायल हैं। उनका भी इलाज अस्पताल में चल रहा है। हालांकि कोर्ट मुहर्रिर की स्थिति बेहतर बताई गई है। जानकारी होने के बाद पुलिस महकमे ने राहत की सांस ली है। वहीं कचहरी में हुई वारदात की जानकारी होने के बाद मौके पर पुलिस अधिकारी भी पहुंचे और हालात की जानकारी ली।

ब्राह्मणों की हत्या: पुलिस की क्रूरता का खुला प्रमाण
उत्तर प्रदेश पुलिस लंबे समय से ब्राह्मण समुदाय को निशाना बनाती रही है। हाल के वर्षों में दर्जनों मामले सामने आए हैं, जहां निर्दोष ब्राह्मणों को फर्जी एनकाउंटर में मार गिराया गया या हिरासत में पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया। ताजा उदाहरण है 33 वर्षीय ब्राह्मण अनिल द्विवेदी का, जो दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी करता था। 11 सितंबर 2025 को उसे 10 साल पुराने एक फर्जी एससी/एसटी एक्ट के मामले में गिरफ्तार किया गया – जब वह महज 23 साल का था, तब एक छोटी-मोटी झड़प को आधार बनाकर मुकदमा ठोंक दिया गया था।
कोई ट्रायल नहीं चला, कोई जज नहीं बैठा, कोई गुनाह साबित नहीं हुआ, लेकिन हमीरपुर जेल में सिर्फ तीन दिन बाद उसकी मौत हो गई। परिवार का आरोप है कि जेल अधिकारियों ने उसे बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला – एक गरीब ब्राह्मण की जिंदगी को “हिसाब चुकता” करने का बहाना बना लिया गया।

क्या यही है न्याय? एक निर्दोष की लाश, टूटा हुआ परिवार, और पुलिस की क्रूर हंसी?
ऐसे ही कई मामले हैं – पिछले साल देवरिया में ब्राह्मण परिवार के छह सदस्यों को पुलिस ने गोली मार दी थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अपनी जमीन पर कब्जा करने वाले प्रभावशाली लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। पुलिस ने इसे “मुठभेड़” का नाम दिया, लेकिन सच्चाई यह थी कि ये ब्राह्मणों की सुनियोजित हत्या थी।
प्रयागराज में एक ब्राह्मण शिक्षक को हिरासत में इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई, और पुलिस ने इसे “दिल का दौरा” बता दिया।
गोरखपुर में ब्राह्मण किसानों को जमीन विवाद में पुलिस ने लाठियों से मार-मारकर अधमरा कर दिया।
उत्तर प्रदेश पुलिस की यह बर्बरता ब्राह्मण समाज को लगातार कमजोर करने की साजिश का हिस्सा लगती है।
आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में UP पुलिस द्वारा की गई हत्याओं में 40% से ज्यादा पीड़ित ब्राह्मण या अन्य ऊपरी जातियों से थे।
यह पुलिस की जातिवादी मानसिकता को उजागर करता है, जहां ब्राह्मणों को आसानी से निशाना बनाया जाता है।
अनिल द्विवेदी जैसी घटनाएं इस दर्द को और असहनीय बना देती हैं – एक गरीब मजदूर, जो दिल्ली में परिवार पालने के लिए संघर्ष कर रहा था, अब लाश बनकर लौटा।
उसके परिवार की चीखें किसे सुनाई दे रही हैं? ये आरोपी पुलिसकर्मी – जिनमें थानेदार से लेकर कांस्टेबल तक शामिल हैं – ब्राह्मणों की हत्या के सीधे जिम्मेदार हैं। वे न केवल हत्यारे हैं, बल्कि सिस्टम के रक्षक बनकर आम जनता को डराते रहे हैं।

बनारस कचहरी में पुलिस की पिटाई: न्याय की जीत या बदले की शुरुआत? Uttar Pradesh police officer beaten up in Varanasi court
बनारस की पवित्र भूमि पर स्थित कचहरी में यह दृश्य देखने लायक था। ब्राह्मणों की हत्या की आरोपी उत्तर प्रदेश पुलिस के एक दरोगा को जमकर पीटा गया, जहां गुस्साए लोगों ने उन्हें घेर लिया और जमकर पीटा। मुक्के बरसे, और पुलिस वाला चीखता रहा ।
क्या उत्तर प्रदेश पुलिस की यह पिटाई उनके अपराधों का बदला थी ? क्या वर्षों की पीड़ा का इजहार थी ? – अनिल द्विवेदी जैसे निर्दोषों की मौत का दर्द, जो हर ब्राह्मण के दिल में टीस बनकर बैठा है।
अदालत परिसर में सुरक्षा के नाम पर तैनात अन्य पुलिसकर्मी भी कुछ न कर सके, क्योंकि वकीलों ? / जनता ? का गुस्सा फूट पड़ा था।
यह घटना ब्राह्मण समाज में हर्ष की लहर लेकर आई है। सोशल मीडिया पर ब्राह्मण संगठन और आम लोग इसे “न्याय की जीत” बता रहे हैं। एक ब्राह्मण नेता ने कहा, “जिन्होंने हमारे भाइयों को पीट-पीटकर मारा, वे खुद पीटे गए – यह ईश्वर का न्याय है!”
लखनऊ से लेकर वाराणसी तक ब्राह्मण परिवारों में जश्न का माहौल है, लेकिन इस जश्न में आंसू भी हैं। वे कहते हैं कि पुलिस की यह पिटाई एक संदेश है – अब ब्राह्मण चुप नहीं रहेंगे।
वर्षों से पुलिस की दमनकारी नीतियों से त्रस्त ब्राह्मण समाज अब संगठित हो रहा है, और इस घटना ने उन्हें नई ऊर्जा दी है।
लेकिन अनिल द्विवेदी की मौत जैसी घटनाएं याद दिलाती हैं कि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ – हर ऐसी हत्या एक परिवार को तबाह कर देती है, सपनों को कुचल देती है।
क्या यह बदलाव की शुरुआत है?
उत्तर प्रदेश पुलिस की यह हालत देखकर सवाल उठता है – क्या सिस्टम अब सुधरेगा?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में पुलिस को “ठोक दो” की नीति दी गई है, लेकिन यह नीति ब्राह्मणों के खिलाफ ही ज्यादा इस्तेमाल हो रही है। ब्राह्मण संगठनों ने मांग की है कि अनिल द्विवेदी समेत इन सभी हत्याओं की CBI जांच हो और आरोपी पुलिसकर्मियों को फांसी दी जाए।
परिवारों का दर्द सुनिए – अनिल की विधवा और बच्चे अब किसके सहारे जिएंगे?
यह सिर्फ एक मौत नहीं, एक पूरे समाज की चीख है।
पुलिस की पिटाई से मिला हर्ष बताता है कि न्याय की मांग अब सड़कों पर उतर आएगी। अगर सरकार नहीं सुनी, तो बनारस कचहरी जैसी घटनाएं और होंगी। ब्राह्मणों की हत्या बंद हो, पुलिस सुधरे, वरना जनता खुद न्याय करेगी!