फर्जी बैनामे से जमीन पर कब्जे का खेल जारी, निष्पक्ष जांच से होगा खुलासा असली मालिक कौन!

The game of land grabbing through fake deeds
The game of land grabbing through fake deeds

प्रयागराज, 7 अक्टूबर 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में नैनी थाना क्षेत्र के अरैल इलाके में स्थित प्राचीन सोमेश्वर मंदिर के आसपास फैली एक छोटी सी जमीन अब एक बड़े विवाद का केंद्र बन चुकी है। यह विवाद न केवल भूमि के स्वामित्व को लेकर है, बल्कि इसमें फर्जी दस्तावेजों, अवैध कब्जे और प्रशासनिक लापरवाही के गंभीर आरोप भी शामिल हैं।

दारागंज के निवासी शिवमंगल गुप्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता कृष्णमूर्ति तिवारी के परिवार के बीच यह झगड़ा अब इतना गहरा हो गया है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आपराधिक साजिश रचने का इल्जाम लगा रहे हैं। सोमवार को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्लब के नारद सभागार में आयोजित प्रेस वार्ता से यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया, और अब सभी की नजरें राजस्व विभाग की निष्पक्ष जांच पर टिकी हैं।

अरैल क्षेत्र प्रयागराज का एक ऐसा इलाका है जहां गंगा नदी के किनारे बसी प्राचीन धरोहरें और आधुनिक शहरीकरण का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। सोमेश्वर मंदिर, जो सदियों पुराना शिवालय है, भक्तों की आस्था का प्रतीक है। मंदिर के पास की यह विवादित जमीन लगभग 500 वर्ग मीटर की बताई जा रही है, जो मंदिर की सीमा से सटकर स्थित है।

इस जमीन का मूल्यांकन आज के बाजार दर के हिसाब से करोड़ों रुपये में हो सकता है, क्योंकि यह धार्मिक स्थल के निकट होने के कारण व्यावसायिक और आवासीय दोनों दृष्टि से आकर्षक है। लेकिन यही जमीन अब दो परिवारों के बीच खून-खराबे का कारण बन रही है।

विवाद की जड़ें: दस साल पुरानी खरीद-फरोख्त का रहस्य

शिवमंगल गुप्ता, जो दारागंज में एक छोटे से व्यवसायी हैं, ने प्रेस वार्ता में अपनी पूरी कहानी बयान की। उनके अनुसार, लगभग दस वर्ष पूर्व, यानी 2015 में, उन्होंने नैनी क्षेत्र में इस जमीन को एक स्थानीय विक्रेता से विधिवत बैनामा कराकर खरीदा था। “मैंने सब कुछ कानूनी तरीके से किया। दाखिल-खारिज राजस्व विभाग में दर्ज हो गया, और मैंने अपनी मेहनत की कमाई से यह जमीन खरीदी ताकि परिवार के लिए एक छोटा सा घर बना सकूं,” गुप्ता ने भावुक होकर कहा।

उन्होंने दावा किया कि बैनामे के बाद वे नियमित रूप से जमीन पर जाकर देखते रहे, लेकिन कोई बड़ा निर्माण नहीं किया क्योंकि इलाका संवेदनशील था।

गुप्ता के मुताबिक, समस्या तब शुरू हुई जब 2020 के आसपास अधिवक्ता कृष्णमूर्ति तिवारी ने अचानक दावा ठोंक दिया कि यह जमीन उनकी है। “तिवारी साहब ने फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया और मेरी जमीन पर कब्जे की कोशिश की।

मैंने तुरंत राजस्व विभाग में शिकायत की, और धारा 24 के तहत पैमाइश कराई। पैमाइश रिपोर्ट में साफ लिखा है कि जमीन का रकबा नंबर 1234 है, जो मेरे नाम पर दर्ज है। तिवारी पक्ष का रकबा नंबर 1235 है, जो बगल की जमीन है। फिर भी वे हठधर्मी हैं,” गुप्ता ने आरोप लगाया।

पैमाइश के बाद भी विवाद शांत नहीं हुआ। 27 सितंबर 2025 को, जब गुप्ता और उनके कुछ साथी जमीन का निरीक्षण करने गए, तो उन्होंने देखा कि कुछ अज्ञात लोग अवैध निर्माण शुरू कर चुके थे। “हमने विरोध किया, लेकिन वे भारी संख्या में थे। हमने नैनी थाने में तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने उल्टा हमें ही शांति भंग की धारा 107 के तहत चालान कर दिया। यह न्याय नहीं, अन्याय है,” गुप्ता ने पुलिस पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा।

उन्होंने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डीजीपी, प्रयागराज पुलिस आयुक्त और एसीपी सहित कई उच्च अधिकारियों को प्रार्थना पत्र भेजे हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

तिवारी पक्ष का पलटवार: 2006 का पुराना बैनामा और हरिजन भूमि का दावा

दूसरी ओर, अधिवक्ता कृष्णमूर्ति तिवारी का परिवार इस पूरे मामले को ‘षड्यंत्र’ बता रहा है। तिवारी के भाई ने मंगलवार को एक निजी न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में गुप्ता के सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। “हमारा परिवार इस जमीन का मालिक 2006 से है। तब हमारे पिता ने विधिवत बैनामा कराया था, और राजस्व रिकॉर्ड में हमारा नाम दर्ज है।

गुप्ता ने तो दस साल बाद एक हरिजन परिवार से फर्जी बैनामा कर लिया। हरिजन भूमि पर बाहरी व्यक्ति बिना जिलाधिकारी की अनुमति के खरीद ही नहीं सकता। यह कानून का उल्लंघन है,” तिवारी ने दावा किया।

तिवारी पक्ष के अनुसार, उनकी जमीन पर 2006 से ही छोटा सा एक झोपड़ी जैसा निर्माण था, जो अब मंदिर के विस्तार के लिए उपयोग हो रहा है। “गुप्ता ने पैसे देकर फर्जी दस्तावेज बनवाए और अब कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।

हमने भी राजस्व विभाग में शिकायत की है, और निष्पक्ष जांच की मांग की है। अगर कोई षड्यंत्रकारी तत्व पकड़े जाते हैं, तो उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 467 (जालसाजी) के तहत मुकदमा दर्ज होगा।

तिवारी परिवार प्रयागराज की कानूनी दुनिया में जाना-पहचाना नाम है। कृष्णमूर्ति तिवारी इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। गुप्ता जैसे बाहरी लोग इसे हड़पना चाहते हैं,” तिवारी पक्ष ने कहा।

घटनाक्रम: अवैध निर्माण से थाने तक का सफर

यह विवाद कोई नई बात नहीं है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, अरैल क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में कम से कम दस ऐसे भूमि विवाद हो चुके हैं, जहां फर्जी बैनामे का मुद्दा उठा। सोमेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित रामेश्वर तिवारी (तिवारी परिवार से कोई संबंध नहीं) ने बताया, “मंदिर के पास की जमीनें हमेशा विवादित रहती हैं क्योंकि यहां तीर्थयात्रियों की भीड़ लगती है। लेकिन इस बार मामला गंभीर है। 27 सितंबर की घटना के बाद नैनी थाने में दर्ज एफआईआर में दोनों पक्षों पर शांति भंग का आरोप है।

गुप्ता पक्ष का कहना है कि पुलिस तिवारी के प्रभाव में है, जबकि तिवारी पक्ष पुलिस की निष्पक्षता की तारीफ कर रहा है। एक स्थानीय पत्रकार, जो इस इलाके को कवर करते हैं, ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “प्रयागराज में भूमि माफिया सक्रिय हैं। फर्जी दस्तावेज बनवाना आसान है, लेकिन राजस्व विभाग की पैमाइश ही अंतिम सत्य है। यहां तो पैमाइश भी दो बार हुई, लेकिन दोनों रिपोर्ट अलग-अलग हैं।”

कानूनी कोण: धारा 24, हरिजन भूमि और जालसाजी के जाल

इस मामले में कानूनी पहलू काफी जटिल हैं। राजस्व संहिता की धारा 24 के तहत पैमाइश कराई जाती है जब दो पक्षों के दावे टकराते हैं। गुप्ता पक्ष की पैमाइश रिपोर्ट 2022 की है, जिसमें उनकी जमीन की चौहद्दियां साफ बताई गई हैं।

लेकिन तिवारी पक्ष 2024 में एक नई पैमाइश का हवाला दे रहा है, जो उनके पक्ष में है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर जमीन अनुसूचित जाति (हरिजन) की है, तो एससी/एसटी एक्ट के तहत बिना जिलाधिकारी की अनुमति के बैनामा अमान्य है।

एक वरिष्ठ राजस्व अधिकारी ने बताया (नाम गोपनीय), “ऐसे मामलों में कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। लेकिन प्रयागराज में राजस्व अदालतों में लाखों मामले लंबित हैं। यहां तो तुरंत एसडीएम स्तर पर जांच होनी चाहिए।” इसके अलावा, फर्जी बैनामे का आरोप आईपीसी की धारा 467 के दायरे में आता है, जिसकी सजा 10 वर्ष तक की कैद हो सकती है।

स्थानीय प्रभाव: आस्था और विकास के बीच फंसा इलाका

यह विवाद केवल दो परिवारों तक सीमित नहीं है। अरैल क्षेत्र के सैकड़ों निवासी इससे प्रभावित हैं। सोमेश्वर मंदिर पर सालाना कुम्भ मेला के दौरान लाखों श्रद्धालु आते हैं, और विवादित जमीन मंदिर की पार्किंग या विस्तार के लिए उपयोग हो सकती है।

स्थानीय व्यापारी संघ के अध्यक्ष ने कहा, “अगर यह विवाद सुलझा नहीं, तो इलाके में विकास रुक जाएगा। सड़क चौड़ीकरण का प्रोजेक्ट भी प्रभावित हो रहा है।”महिलाओं और बच्चों पर भी असर पड़ रहा है। गुप्ता परिवार की एक महिला सदस्य ने बताया, “रातों को डर लगता है। बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते से गुजरते हैं, जहां यह झगड़ा होता है।” वहीं, तिवारी परिवार की एक महिला सदस्य ने कहा, “हम धार्मिक परिवार हैं, लेकिन गुप्ता हमें बदनाम कर रहे हैं।”

प्रशासन की चुप्पी: जांच कब होगी?

मुख्यमंत्री कार्यालय से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार प्रार्थना पत्र प्राप्त हो चुके हैं।

प्रयागराज डीएम की ओर से कहा गया है कि “मामले की जांच चल रही है, जल्द ही फैसला होगा।” लेकिन स्थानीय स्तर पर नैनी थाने के एसएचओ ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

न्याय की राह में रोड़े

यह विवाद प्रयागराज जैसे शहर के लिए एक सबक है, जहां भूमि संसाधन सीमित हैं और आबादी तेजी से बढ़ रही है। शिवमंगल गुप्ता और तिवारी बंधुओं के बीच यह लड़ाई न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करती है।

क्या राजस्व विभाग की जांच निष्पक्ष होगी? क्या फर्जी दस्तावेजों का पर्दाफाश होगा? या यह मामला अदालतों की लंबी कतार में खिंचता रहेगा? सभी सवालों का जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा। फिलहाल, अरैल की शांत गलियां तनाव की चपेट में हैं, और सोमेश्वर मंदिर की घंटियां इस विवाद के बीच भी आस्था का संदेश दे रही हैं।

शेयर करने के लिए धन्यवाद्

You may also like...