ब्राह्मण बनिया भारत छोड़ो आंदोलन करने वाले लोग किस प्रवृत्ति के लोग हैं

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से दिसंबर 2022 में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में दीवारों पर ‘ब्राह्मणों भारत छोड़ो’ जैसे नारे लिखे गए थे, जो ब्राह्मण और बनिया समुदायों के प्रति विरोधाभासी भावनाओं को दर्शाते हैं।
नारों की प्रकृति और संदर्भ:
जेएनयू परिसर में लाल रंग से लिखे गए इन नारों में ‘ब्राह्मणों भारत छोड़ो’, ‘यहां खून बहेगा’ जैसे शब्द शामिल थे, जो स्पष्ट रूप से ब्राह्मण और बनिया समुदायों के प्रति विरोध को प्रदर्शित करते हैं।
संभावित कारण:
ऐसी घटनाएँ समाज में व्याप्त जातिवाद, ऐतिहासिक अन्याय, और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के प्रति असंतोष को प्रतिबिंबित करती हैं। कुछ छात्रों का मानना है कि दलित, बहुजन और आदिवासी विरोधी टिप्पणियाँ और नारों का उद्देश्य सवर्ण समुदायों के वर्चस्व को चुनौती देना है। बापसा से जुड़े बिश्वजीत मिंजी के अनुसार, “यह घटनाएँ दर्शाती हैं कि दलित-बहुजन आंदोलनों की सफलता से सवर्णों के वर्चस्व को खतरा महसूस हो रहा है।”
समाज की प्रवृत्तियाँ:
ऐसी घटनाएँ समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता, और ऐतिहासिक अन्याय के प्रति असंतोष को दर्शाती हैं। यहां तक कि उच्च जातियों के खिलाफ उठाए गए नारों से यह संकेत मिलता है कि कुछ समूह अपने सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह समाज में गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक विभाजन की ओर इंगित करता है, जो समय-समय पर विभिन्न रूपों में प्रकट होता है।
जेएनयू में ब्राह्मण और बनिया समुदायों के खिलाफ लिखे गए नारे समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता, और ऐतिहासिक अन्याय के प्रति असंतोष को प्रदर्शित करते हैं। यह घटनाएँ समाज की जटिल सामाजिक संरचना और विभिन्न समुदायों के बीच तनाव को उजागर करती हैं, जो समय-समय पर विभिन्न रूपों में सामने आते हैं।
“ब्राह्मण बनिया भारत छोड़ो” जैसे नारे या आंदोलन का कोई ऐतिहासिक या व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त संदर्भ भारत के स्वतंत्रता संग्राम या आधुनिक इतिहास में दर्ज नहीं है। यह वाक्यांश हाल के समय में कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स या विशिष्ट समूहों के बीच चर्चा में आया प्रतीत होता है, जैसा कि X पर कुछ पोस्ट्स में देखा जा सकता है। इसे किसी संगठित “आंदोलन” के बजाय एक नारे या भावना के रूप में समझा जा सकता है, जो कुछ लोगों द्वारा व्यक्त की जा रही है।

इन नारों को उठाने वाले लोग किस प्रवृत्ति के हो सकते हैं?
इस तरह के नारे उठाने वाले लोग संभवतः सामाजिक, राजनीतिक या वैचारिक असंतोष से प्रेरित हो सकते हैं। इनकी प्रवृत्ति को निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है:
- जातिगत असंतोष से प्रेरित: यह नारा “ब्राह्मण” और “बनिया” जैसे विशिष्ट समुदायों को लक्षित करता है, जो पारंपरिक रूप से भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली माने जाते हैं। इसे उठाने वाले लोग ऐसे समूह हो सकते हैं जो ऐतिहासिक या समकालीन असमानताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हों। ये लोग जाति-आधारित शक्ति संरचनाओं को चुनौती देना चाहते हो सकते हैं।
- वामपंथी या समाजवादी विचारधारा: कुछ मामलों में, जैसा कि X पर एक पोस्ट में संकेत मिलता है, इस तरह के नारे वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों द्वारा उठाए जा सकते हैं। ये लोग पूंजीवाद, सामाजिक असमानता और हिंदुत्व की एकता को अपने राजनीतिक हितों के लिए खतरा मान सकते हैं।
- राजनीतिक उकसावे का हिस्सा: यह भी संभव है कि यह नारा किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत उकसावे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हो, ताकि समाज में विभाजन पैदा हो और अराजकता फैले। इसे कुछ समूहों द्वारा जानबूझकर भड़काया जा सकता है ताकि सामाजिक तनाव बढ़े।
- अराजकतावादी तत्व: कुछ लोग केवल अराजकता फैलाने या मौजूदा व्यवस्था को अस्थिर करने के उद्देश्य से इस तरह के नारे लगा सकते हैं, बिना किसी स्पष्ट वैचारिक आधार के।
अराजकता कौन फैला रहा है?
अराजकता फैलाने वालों की पहचान स्पष्ट रूप से करना मुश्किल है, क्योंकि इसके पीछे कोई एक संगठन या समूह स्पष्ट रूप से सामने नहीं आता। हालांकि, निम्नलिखित संभावनाएं हो सकती हैं:
- सोशल मीडिया पर सक्रिय समूह: X जैसे प्लेटफॉर्म पर इस तरह के नारे प्रसारित करने वाले व्यक्ति या छोटे समूह हो सकते हैं, जो अपनी बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। ये लोग वास्तविक आंदोलन से ज्यादा प्रचार के जरिए प्रभाव डालने की कोशिश कर सकते हैं।
- वैचारिक संगठन: कुछ छोटे राजनीतिक या सामाजिक संगठन, जो जाति या वर्ग-आधारित मुद्दों पर काम करते हैं, इस तरह के नारों को हवा दे सकते हैं। हालांकि, इसका कोई ठोस सबूत उपलब्ध नहीं है।
- प्रतिक्रियावादी ताकतें: X पर एक पोस्ट में दावा किया गया है कि “एक वर्ग अब देश को गृह युद्ध में झोंकने को उतारू है।” यह संकेत देता है कि कुछ लोग इसे सुनियोजित साजिश के रूप में देखते हैं, जिसमें शायद विरोधी राजनीतिक ताकतें या असंतुष्ट समूह शामिल हों।
विश्लेषण और निष्कर्ष
“ब्राह्मण बनिया भारत छोड़ो” जैसे नारे ऐतिहासिक “भारत छोड़ो आंदोलन” (1942) से प्रेरित हो सकते हैं, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ था, लेकिन इसका वर्तमान संदर्भ पूरी तरह अलग है। यह नारा सामाजिक एकता को तोड़ने और विशिष्ट समुदायों को निशाना बनाने का प्रयास प्रतीत होता है। इसे उठाने वाले लोग संभवतः असंतुष्ट, वैचारिक रूप से कट्टर, या उकसावे की मंशा रखने वाले हो सकते हैं। अराजकता फैलाने की जिम्मेदारी निश्चित रूप से एक समूह पर नहीं डाली जा सकती, लेकिन सोशल मीडिया और छोटे वैचारिक समूह इसमें भूमिका निभा सकते हैं।
यह ध्यान रखना जरूरी है कि इस तरह के नारे अभी तक व्यापक जन-आंदोलन का रूप नहीं ले सके हैं और ज्यादातर सीमित दायरे में ही चर्चा का विषय बने हैं। यह एक गंभीर सामाजिक मुद्दा बनने से पहले इसकी गहराई से जांच और संवाद की जरूरत है।