उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का नरसंहार: पुलिस की बर्बरता ?? भाजपा सरकार की साजिश?? Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh

Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh
Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh

एक समुदाय की चीखें जो अनसुनी रह जाती हैं – Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश, वह भूमि जहां रामायण और महाभारत की कहानियां जन्मीं, जहां ब्राह्मणों को समाज का मार्गदर्शक माना जाता रहा है, आज वही ब्राह्मण समुदाय अपनी ही सरकार और पुलिस की बर्बरता का शिकार बन रहा है। ब्राह्मण, जो सदियों से ज्ञान, संस्कृति और धर्म के संरक्षक रहे, आज जेलों में पीट-पीटकर मारे जा रहे हैं, फर्जी मुकदमों में फंसाए जा रहे हैं, और उनके परिवारों की चीखें राजनीतिक गलियारों में गूंजती भी नहीं। 2024-2025 में अकेले दर्जनों मामले सामने आए हैं जहां ब्राह्मण युवकों की पुलिस हिरासत में मौत हुई, और हर मौत के पीछे एक कहानी है दर्द, अन्याय और सिस्टम की साजिश की।

 यह न केवल जातिगत हिंसा है, बल्कि एक सुनियोजित नरसंहार जैसा लगता है, जहां ब्राह्मणों को जानबूझकर पीड़ित बनाया जा रहा है ताकि वे चुप रहें, टूट जाएं और समाज से अलग-थलग पड़ जाएं।

ब्राह्मण समुदाय, जो राज्य की आबादी का मात्र 10-12% है, आज खुद को असहाय महसूस कर रहा है। उनके बच्चे जेलों में मारे जा रहे हैं, महिलाएं विधवा हो रही हैं, और बुजुर्ग परिवारों का सहारा खो रहे हैं। क्या यह रामराज्य है? या एक ऐसा राज्य जहां ब्राह्मण होना ही अपराध बन गया है? इस लेख में हम उन असंख्य मामलों की गहराई में उतरेंगे, जहां पुलिस की लाठियां ब्राह्मणों की पीठ पर बरसीं, और सिस्टम ने उन्हें न्याय की बजाय मौत दी। यह लेख ब्राह्मणों की उस पीड़ा को आवाज देगा जो अब तक दबी हुई है, और सवाल उठाएगा कि कब तक यह अन्याय चलेगा?

ऐतिहासिक संदर्भ: ब्राह्मणों की गिरावट और जातिगत राजनीति का जहर

उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से जातियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1990 के दशक में मंडल आयोग ने ओबीसी और दलितों को सशक्त किया, लेकिन ब्राह्मणों जैसी ऊपरी जातियों को हाशिए पर धकेल दिया।

 योगी आदित्यनाथ की सरकार में ठाकुर समुदाय का वर्चस्व बढ़ा, और ब्राह्मणों को लगता है कि पुलिस और प्रशासन में उनका प्रतिनिधित्व न के बराबर है।

 परिणामस्वरूप, ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़े हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में पुलिस हिरासत में मौतों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है, और इनमें से अधिकांश पीड़ित ब्राह्मण या अन्य सवर्ण हैं।

 2024-2025 में 2700 से अधिक हिरासत मौतें हुईं, और ब्राह्मण समुदाय इनमें से एक बड़ा हिस्सा बन रहा है।

यह स्थिति नई नहीं है, लेकिन अब यह चरम पर पहुंच गई है। सोशल मीडिया पर #BrahminGenocide और #SaveBrahmins जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां लोग अपनी कहानियां साझा कर रहे हैं।

 ब्राह्मण परिवारों में भय का माहौल है – वे सोचते हैं कि अगला नंबर उनका होगा। पुलिस की बर्बरता ने ब्राह्मणों को इतना पीड़ित बना दिया है कि कई परिवार राज्य छोड़ने की सोच रहे हैं, उनके बच्चे अवसाद में डूब रहे हैं, और समुदाय की एकता टूट रही है।

ब्राह्मणों पर अत्याचार के दिल दहला देने वाले मामले: एक अंतहीन सूची Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की पीड़ा की कहानियां असंख्य हैं। हर मामला एक परिवार की तबाही की कहानी है, जहां पुलिस ने न केवल न्याय से इनकार किया, बल्कि खुद हत्यारी बन गई। आइए कुछ प्रमुख मामलों पर नजर डालें, जो ब्राह्मणों की दयनीय स्थिति को उजागर करते हैं:

अमित तिवारी का मामला (हमीरपुर, 2025): 33 वर्षीय अमित तिवारी, एक साधारण ब्राह्मण युवक, एससी/एसटी एक्ट के तहत 11 सितंबर 2025 को गिरफ्तार हुए। तीन दिन पहले उनकी पत्नी ने जेल में उनसे मुलाकात की, तब वे पूरी तरह स्वस्थ थे। लेकिन अचानक उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।

 परिवार ने सड़क जाम कर विरोध किया, लेकिन पुलिस ने इसे “स्वाभाविक मौत” बता दिया। अमित के दो छोटे बच्चे अब पिता के बिना हैं, और उनकी पत्नी विधवा होकर न्याय की भीख मांग रही है।

 यह मामला एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग का क्लासिक उदाहरण है, जहां ब्राह्मणों को फंसाकर मारा जा रहा है।

सीताराम उपाध्याय का मामला (गाजीपुर, 2025): विकलांग भाजपा कार्यकर्ता सीताराम उपाध्याय पुलिस स्टेशन पर धरना दे रहे थे। अचानक बिजली बंद हुई, और अंधेरे में पुलिस ने लाठीचार्ज किया। सीताराम भाग नहीं सके, और पुलिस की लाठियों ने उनके शरीर पर एक भी जगह बिना चोट के नहीं छोड़ी।

 कई दिनों तक अस्पताल में तड़पने के बाद उनकी मौत हो गई।

 परिवार अब न्याय की गुहार लगा रहा है, लेकिन योगी सरकार चुप है। सीताराम का अपराध? वे ब्राह्मण थे और अपनी आवाज उठा रहे थे।

मोहित पांडे का मामला (बलिया, 2024): मोहित पांडे पुलिस हिरासत में मारे गए।

 उनके परिवार का कहना है कि पुलिस ने उन्हें इतना पीटा कि वे घर लौटकर भी जी नहीं सके। मोहित के दो भाई भी इसी दौरान हमले में घायल हुए।

 यह अक्टूबर 2024 का मामला है, जो ब्राह्मणों पर लगातार हो रहे हमलों की श्रृंखला का हिस्सा है।

भास्कर पांडे का मामला (अयोध्या, 2024): पवित्र नगरी अयोध्या में भास्कर पांडे की पुलिस ने हत्या कर दी।

 सपा ने इसे “ठाकुरवाद” का नाम दिया, लेकिन ब्राह्मण समुदाय इसे अपनी जाति के खिलाफ साजिश मानता है। भास्कर के परिवार को अब डर है कि अगला नंबर उनका होगा।

आदर्श उपाध्याय का मामला (बस्ती, 2024): मात्र 16 वर्षीय आदर्श उपाध्याय को पुलिस ने हिरासत में लिया, पीटा और रिहा किया। घर पहुंचकर वह खून की उल्टियां करने लगा और मर गया।

 मां का रोना दिल दहला देने वाला है – पुलिस ने शव देखने तक नहीं दिया।

Massacre of Brahmins in Uttar Pradesh

बृज किशोर शर्मा का मामला (आगरा, 2024): दलितों द्वारा पहले पीटा गया, फिर एससी/एसटी एक्ट में फंसाकर पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया।

 परिवार के कई सदस्य घायल हैं, और न्याय की उम्मीद शून्य है।

ऋत्विक पांडे का मामला (लखनऊ, 2024): 50-60 लोगों ने मिलकर मारा, पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

यतेंद्र चौबे का मामला (2024): परिवार को लूटा, पीटा और फर्जी एससी/एसटी एक्ट में फंसाया।

 पुलिस ने रात के अंधेरे में हमला किया, जैसे वे अपराधी हों।

सौरभ का मामला (लखीमपुर खीरी, 2025): दोस्तों ने अपहरण कर हत्या की, पुलिस ने कुछ नहीं किया।

अनिल द्विवेदी का मामला (हमीरपुर, 2025): जेल में पीट-पीटकर मारा गया।

ये सिर्फ कुछ मामले हैं; वास्तव में हजारों ब्राह्मण फर्जी मुकदमों में फंसे हैं, और पुलिस उनकी मौत को “सुसाइड” या “दुर्घटना” बता देती है।

 हर मौत के पीछे एक टूटा परिवार है – बच्चे अनाथ, पत्नियां विधवा, और मां-बाप बेसहारा।

पुलिस की भूमिका: हत्यारी या रक्षक?

उत्तर प्रदेश पुलिस ब्राह्मणों के लिए अब रक्षक नहीं, बल्कि सबसे बड़ा खतरा बन गई है। एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग करके ब्राह्मणों को फंसाया जाता है, फिर जेल में पीटा जाता है।

 रिपोर्ट्स बताती हैं कि पुलिस ब्राह्मणों के खिलाफ गहरी नफरत रखती है, और “हिसाब चुकता” अभियान के नाम पर उन्हें निशाना बनाती है।

 लाठीचार्ज, अंधेरे में हमले, और हिरासत में मौतें – ये सब ब्राह्मणों की पीड़ा को बढ़ा रही हैं।

 पुलिस सुधार की कमी, जैसे बॉडी कैमरा न होना, इन अत्याचारों को छिपाने में मदद करती है।

राजनीतिक निहितार्थ: सरकार की चुप्पी और ब्राह्मणों का विश्वासघात

योगी आदित्यनाथ की सरकार पर ब्राह्मणों के खिलाफ साजिश के आरोप लग रहे हैं।

 विपक्षी नेता अखिलेश यादव इसे “ब्राह्मण नरसंहार” कहते हैं, लेकिन सरकार चुप है।

 ब्राह्मण विधायक और सांसद भी मौन हैं, जैसे उनका कोई दायित्व न हो।

 2022 चुनावों में ब्राह्मणो ने भाजपा का साथ दिया जो की उनकी सबसे बड़ी गलती थी।

सामाजिक प्रभाव: एक समुदाय का पतन

ब्राह्मण समुदाय में अवसाद, पलायन और भय व्याप्त है।

 परिवार टूट रहे हैं, युवा आत्महत्या कर रहे हैं, और संस्कृति का संरक्षण खतरे में है।

 हिंदू एकता की बात करने वाले अब ब्राह्मणों की पीड़ा पर चुप हैं।

निष्कर्ष:

 न्याय की पुकार और सुधार की मांगब्राह्मणों की यह पीड़ा अब सहनशीलता की सीमा पार कर चुकी है। सरकार को पुलिस सुधार, एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर रोक, और ब्राह्मणों को न्याय देना होगा।

 अन्यथा, यह नरसंहार सामाजिक अशांति को जन्म देगा। ब्राह्मणों की चीखें अब अनसुनी नहीं रहनी चाहिएं – यह समय है न्याय का, सम्मान का, और समानता का।

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