प्रशांत किशोर: एक राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता तक का सफर

Prashant Kishor The journey from a political strategist to a politician
Prashant Kishor The journey from a political strategist to a politician

प्रशांत किशोर: एक राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता तक का सफर

प्रशांत किशोर, जिन्हें अक्सर ‘पीके’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम है जो पिछले एक दशक में अपनी रणनीतिक सूझबूझ, नवाचार और जनता के बीच प्रभावशाली संवाद के लिए चर्चित रहा है। एक पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ से शुरूआत कर, एक कुशल राजनीतिक रणनीतिकार बनने और फिर स्वयं एक राजनेता के रूप में उभरने तक, प्रशांत किशोर का सफर प्रेरणादायक और असाधारण है।

उनकी कहानी बिहार के छोटे से शहर बक्सर से शुरू होती है और आज वह भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में स्थापित हो चुके हैं।

इस लेख में हम प्रशांत किशोर के जीवन, शिक्षा, करियर, उपलब्धियों और उनकी नवीनतम राजनीतिक पहल ‘जन सुराज’ के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रशांत किशोर का जन्म 20 मार्च 1977 को बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ था। उनके पिता, श्रीकांत पांडेय, एक सरकारी चिकित्सक थे, जो बाद में बक्सर में स्थानांतरित हो गए। प्रशांत का बचपन बक्सर में बीता, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय से पूरी की।

उनके परिवार में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था, और उनकी मां, जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की रहने वाली थीं, ने बच्चों की शिक्षा में विशेष योगदान दिया। प्रशांत के दो भाई और दो बहनें हैं, और उनका परिवार शिक्षित और प्रोफेशनल पृष्ठभूमि से आता है।

प्रशांत ने अपनी स्कूली शिक्षा बक्सर में पूरी करने के बाद पटना के साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए हैदराबाद का रुख किया, लेकिन उनकी रुचि तकनीकी क्षेत्र से अधिक सामाजिक और स्वास्थ्य क्षेत्र में थी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पब्लिक हेल्थ में प्रोफेशनल कोर्स किया, जो उनके करियर का पहला महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ।

एक इंटरव्यू में प्रशांत ने स्वीकार किया कि वह पढ़ाई में औसत थे और कई बार उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। 12वीं के बाद तीन साल और ग्रेजुएशन के बाद दो साल का ड्रॉप लिया था। उनकी यह अनियमित शैक्षिक यात्रा उनके दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास को दर्शाती है।

संयुक्त राष्ट्र में करियर की शुरुआत

प्रशांत किशोर ने अपने करियर की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के साथ की, जहां उन्होंने लगभग आठ वर्षों तक पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ के रूप में काम किया। उनकी पहली पोस्टिंग आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुई, जहां उन्होंने स्वास्थ्य से संबंधित एक यूएन फंडेड प्रोग्राम में हिस्सा लिया। इसके बाद, उन्हें पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए बिहार भेजा गया, जहां उस समय राबड़ी देवी की सरकार थी। बिहार में पोलियो एक गंभीर समस्या थी, और प्रशांत ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए महत्वपूर्ण योगदान दिया। बाद में, उन्हें संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में काम करने का अवसर मिला, और उन्होंने स्विट्जरलैंड, अमेरिका, और अफ्रीका के कुछ देशों में भी सेवाएं दीं। इस दौरान, प्रशांत ने भारत के कुछ राज्यों में कुपोषण पर एक रिसर्च पेपर तैयार किया, जिसमें गुजरात का भी जिक्र था।

प्रशांत किशोर: भारतीय राजनीति का एक क्रांतिकारी रणनीतिकार

प्रशांत किशोर की यात्रा पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ से भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली रणनीतिकार तक की रही है। संयुक्त राष्ट्र में अपने कार्यकाल के बाद, उन्होंने राजनीतिक रणनीति के क्षेत्र में कदम रखा और अपनी अनूठी तकनीकों से कई दलों को जीत दिलाई। यह हिस्सा उनके राजनीतिक करियर के शुरुआती दौर और उनकी संस्था इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) की स्थापना पर केंद्रित है।

राजनीतिक रणनीति में प्रवेश

प्रशांत किशोर ने 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विधानसभा चुनाव अभियान के साथ राजनीति में प्रवेश किया। उनके कुपोषण पर रिसर्च पेपर ने नरेंद्र मोदी का ध्यान आकर्षित किया था, जिसके बाद उन्हें गुजरात के विकास मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने का अवसर मिला। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में उनकी डेटा-आधारित रणनीतियों और मतदाता संवाद की तकनीकों ने बीजेपी को शानदार जीत दिलाई।

यह प्रशांत का पहला बड़ा राजनीतिक अभियान था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।2013 में, प्रशांत ने सिटीजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG) नामक संगठन की स्थापना की, जो स्वयंसेवकों और पेशेवरों का एक समूह था।

CAG ने 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के लिए काम किया। इस अभियान में प्रशांत की रणनीतियाँ क्रांतिकारी थीं। उन्होंने ‘चाय पर चर्चा’ जैसे अभिनव कैंपेन शुरू किए, जो मतदाताओं से सीधा संवाद स्थापित करने का एक अनूठा तरीका था।

इसके अलावा, 3D रैलियाँ, डिजिटल मार्केटिंग, और बूथ-स्तरीय प्रबंधन ने बीजेपी को 282 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दिलाई। इस जीत ने प्रशांत को भारतीय राजनीति में एक ‘गेम-चेंजर’ के रूप में स्थापित कर दिया।

I-PAC की स्थापना और विस्तार

2014 के बाद, प्रशांत ने CAG को इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के रूप में पुनर्गठित किया, जो एक पेशेवर राजनीतिक सलाहकार संगठन बन गया। I-PAC ने डेटा एनालिटिक्स, मतदाता व्यवहार विश्लेषण, और लक्षित अभियानों पर ध्यान केंद्रित किया।

2015 में, प्रशांत ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के गठबंधन के लिए काम किया। उनकी रणनीतियों, जैसे ‘बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो’ नारा और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित कैंपेन, ने महागठबंधन को भारी जीत दिलाई।

इस जीत ने उनकी विश्वसनीयता को और मजबूत किया।प्रशांत की रणनीतियाँ केवल पारंपरिक प्रचार तक सीमित नहीं थीं। वे मतदाताओं के मनोविज्ञान को समझने, डेटा का उपयोग कर क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों को लक्षित करने, और स्थानीय नेताओं के साथ समन्वय में माहिर थे। उनकी यह क्षमता उन्हें अन्य रणनीतिकारों से अलग करती थी।

प्रमुख अभियान और रणनीतियाँ

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन की जीत के बाद, प्रशांत किशोर की मांग पूरे भारत में बढ़ गई। 2016 में, उन्होंने असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए काम किया, जहाँ उनकी रणनीतियों ने पार्टी को पहली बार सत्ता में लाने में मदद की।

इसके बाद, 2017 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी के साथ मिलकर काम किया। हालाँकि, यह अभियान असफल रहा, क्योंकि बीजेपी ने भारी जीत हासिल की। इस हार ने प्रशांत को अपनी रणनीतियों को और परिष्कृत करने का अवसर दिया।

2019 में, प्रशांत ने आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के लिए जगन मोहन रेड्डी के अभियान का नेतृत्व किया। उनकी ‘नव रत्नालु’ योजना और बूथ-स्तरीय प्रचार ने YSRCP को भारी जीत दिलाई। 2021 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए ममता बनर्जी के अभियान को डिज़ाइन किया।

‘बंगला निजेर मेयके चाय’ जैसे नारे और बीजेपी के आक्रामक कैंपेन के खिलाफ लक्षित रणनीतियों ने TMC को शानदार जीत दिलाई। उसी वर्ष, तमिलनाडु में डीएमके के लिए एमके स्टालिन के अभियान में उनकी रणनीतियाँ भी सफल रहीं।

प्रशांत की रणनीतियों की खासियत थी डेटा एनालिटिक्स का उपयोग, मतदाता व्यवहार का गहन विश्लेषण, और स्थानीय मुद्दों पर आधारित संदेश। वे पारंपरिक प्रचार से हटकर डिजिटल और सोशल मीडिया का उपयोग करने में भी माहिर थे। उनकी टीम बूथ-स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करती थी, जिससे अभियान अधिक प्रभावी बनते थे। उनकी यह क्षमता उन्हें क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सफल बनाती थी।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

प्रशांत की हर रणनीति सफल नहीं रही। 2017 में पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) और 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए उनके अभियान असफल रहे। कुछ आलोचकों का मानना है कि उनकी रणनीतियाँ डेटा-केंद्रित होने के कारण भावनात्मक गहराई से चूक जाती थीं। फिर भी, उनकी सफलताओं की संख्या उनकी असफलताओं से कहीं अधिक रही।

जनता दल (यूनाइटेड) में प्रवेश और बाहर निकलना

2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के महागठबंधन की जीत में प्रशांत की रणनीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस सफलता के बाद, नीतीश कुमार ने उन्हें करीब लाने का प्रयास किया। 2018 में, प्रशांत औपचारिक रूप से जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) में शामिल हुए और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए।

यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि यह पहली बार था जब उन्होंने एक रणनीतिकार की बजाय एक राजनेता की भूमिका निभाई। JDU में उनकी भूमिका नीतीश कुमार के साथ रणनीतिक और संगठनात्मक निर्णयों में सलाह देना थी। उन्होंने पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं को संगठित करने और बिहार में JDU की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की।

हालाँकि, नीतीश कुमार के साथ उनके वैचारिक मतभेद जल्द ही सामने आए। प्रशांत ने पार्टी के भीतर अधिक पारदर्शिता और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की वकालत की, जबकि नीतीश कुमार पारंपरिक नेतृत्व शैली पर कायम रहे। 2020 में, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों पर नीतीश के बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर प्रशांत ने सार्वजनिक रूप से असहमति जताई।

इसके परिणामस्वरूप, उन्हें JDU से निष्कासित कर दिया गया। इस घटना ने उनके करियर को एक नया मोड़ दिया, क्योंकि उन्होंने फैसला किया कि अब वे केवल रणनीतिकार के रूप में काम करने के बजाय स्वयं राजनीति में उतरेंगे।

जन सुराज की शुरुआत

JDU से बाहर निकलने के बाद, प्रशांत ने 2022 में ‘जन सुराज’ नामक एक आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन बिहार में वैकल्पिक राजनीति की नींव रखने के लिए था, जिसका लक्ष्य शिक्षा, रोजगार, और प्रशासनिक सुधारों पर आधारित एक नई राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करना था।

जन सुराज की शुरुआत उन्होंने बिहार में एक पैदल यात्रा (पदयात्रा) के साथ की, जिसमें वे गाँव-गाँव जाकर लोगों से मिले और उनकी समस्याओं को समझा। इस आंदोलन का उद्देश्य बिहार की जनता को एक ऐसा मंच देना था, जो जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर विकास और सुशासन पर केंद्रित हो।

जन सुराज ने धीरे-धीरे लोगों का ध्यान खींचा, खासकर युवाओं और शिक्षित वर्ग का। प्रशांत ने बिहार के बेरोजगार युवाओं, विशेषकर बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) के अभ्यर्थियों, के आंदोलन में भी समर्थन दिया।

जन सुराज की स्थापना का मूल उद्देश्य बिहार में वैकल्पिक राजनीति को बढ़ावा देना था, जो जाति और धर्म आधारित राजनीति से हटकर विकास, शिक्षा, और रोजगार पर केंद्रित हो। प्रशांत ने बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था, बेरोजगारी, और पलायन जैसी समस्याओं को जन सुराज के कैंपेन का मुख्य मुद्दा बनाया।

उनका दावा है कि बिहार की समस्याओं का समाधान केवल नई सोच और पारदर्शी शासन से संभव है। जन सुराज ने बिहार के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर जनसंपर्क अभियान चलाए, जिसमें प्रशांत की पदयात्रा एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

इस यात्रा के दौरान, उन्होंने हजारों गाँवों का दौरा किया और स्थानीय लोगों की समस्याओं को समझा।जन सुराज का एक प्रमुख लक्ष्य 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारना है। प्रशांत ने घोषणा की कि उनका दल न तो बीजेपी के साथ गठबंधन करेगा और न ही राजद-जदयू जैसे दलों के साथ।

इसके बजाय, वे स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगे और बिहार की जनता को एक नया विकल्प देंगे। जन सुराज ने युवाओं और महिलाओं को अपने मंच से जोड़ने पर विशेष ध्यान दिया। संगठन ने स्थानीय स्तर पर पंचायत समितियाँ बनाईं, जो नीति निर्माण और उम्मीदवार चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

बीपीएससी आंदोलन में भूमिका

2024 में, बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा में कथित अनियमितताओं को लेकर बिहार के युवाओं ने व्यापक आंदोलन शुरू किया। प्रशांत ने इस आंदोलन का समर्थन किया और प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ खड़े हुए।

उन्होंने सरकार से पारदर्शी जांच और निष्पक्ष परीक्षा प्रक्रिया की मांग की। उनकी सक्रियता ने उन्हें बिहार के बेरोजगार युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया। प्रशांत ने बीपीएससी विवाद को जन सुराज के कैंपेन का हिस्सा बनाया, यह तर्क देते हुए कि बिहार में सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था युवाओं के भविष्य को नष्ट कर रही है। उनकी यह रणनीति बिहार की युवा शक्ति को उनके मंच से जोड़ने में प्रभावी रही।

आलोचनाएँ और चुनौतियाँ

प्रशांत किशोर की सफलता के बावजूद, उनकी आलोचनाएँ भी कम नहीं रही हैं। कुछ लोग उन्हें अवसरवादी मानते हैं, क्योंकि उन्होंने विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों—बीजेपी, जेडीयू, टीएमसी, डीएमके, और वाईएसआरसीपी—के साथ काम किया।

आलोचकों का कहना है कि उनकी रणनीतियाँ केवल जीत पर केंद्रित होती हैं और किसी स्थायी वैचारिक दृष्टिकोण की कमी दिखती है। उदाहरण के लिए, 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और पंजाब में आप के लिए उनके अभियान असफल रहे, जिसके कारण उनकी रणनीतिक क्षमता पर सवाल उठे।

कुछ ने उनकी डेटा-केंद्रित रणनीतियों को भावनात्मक गहराई की कमी वाला बताया, क्योंकि वे मतदाताओं के दिल को छूने में कभी-कभी चूक जाते थे।जन सुराज के साथ उनकी नई भूमिका ने भी आलोचनाएँ आकर्षित की हैं। कई लोग मानते हैं कि बिहार जैसे जटिल राजनीतिक परिदृश्य में एक नया दल स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है, खासकर जब स्थापित दलों जैसे राजद और जेडीयू का प्रभाव मजबूत है।

कुछ आलोचकों का यह भी कहना है कि उनकी पदयात्रा और जनसंपर्क अभियान केवल प्रचार का हिस्सा हैं, और उनकी नीतियों में ठोस कार्ययोजना की कमी है। इसके अलावा, उनके बीजेपी विरोधी रुख को कुछ लोग रणनीतिक चूक मानते हैं, क्योंकि इससे बिहार में उनके समर्थन आधार को नुकसान पहुँच सकता है।

प्रभाव और विरासत

प्रशांत किशोर ने भारतीय राजनीति में डेटा-आधारित रणनीतियों और डिजिटल अभियानों को मुख्यधारा में लाकर एक क्रांति ला दी। उनकी ‘चाय पर चर्चा’, 3D रैलियाँ, और बूथ-स्तरीय प्रबंधन ने आधुनिक चुनावी रणनीतियों को नया आयाम दिया। जन सुराज के साथ, वे बिहार में वैकल्पिक राजनीति की नींव रख रहे हैं, जो जाति-आधारित राजनीति को चुनौती दे सकती है। यदि जन सुराज 2025 के बिहार चुनाव में प्रभाव छोड़ता है, तो यह प्रशांत की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

राजनीतिक विरासत

प्रशांत किशोर ने भारतीय राजनीति में डेटा-आधारित रणनीतियों और आधुनिक अभियानों को मुख्यधारा में लाकर एक स्थायी छाप छोड़ी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ और 3D रैलियों जैसे उनके नवाचारों ने न केवल बीजेपी को जीत दिलाई, बल्कि भारतीय चुनावी रणनीतियों को एक नया आयाम दिया।

उनकी स्थापना, इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC), ने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों के लिए एक पेशेवर मॉडल पेश किया, जिसमें बूथ-स्तरीय प्रबंधन, मतदाता व्यवहार विश्लेषण, और डिजिटल प्रचार शामिल हैं। बिहार (2015), पश्चिम बंगाल (2021), और तमिलनाडु (2021) जैसे उनके सफल अभियानों ने उनकी रणनीतियों को विश्वसनीयता प्रदान की।प्रशांत की सबसे बड़ी विरासत उनकी जन सुराज पहल हो सकती है।

यह आंदोलन, जो अब एक राजनीतिक दल बन चुका है, बिहार में जाति और धर्म आधारित राजनीति को चुनौती देने का प्रयास करता है। उनकी पदयात्रा और युवाओं के साथ जुड़ाव ने उन्हें बिहार के बेरोजगार और शिक्षित वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाया।

बीपीएससी आंदोलन में उनकी सक्रियता ने उनके जन-केंद्रित दृष्टिकोण को और मजबूत किया। यदि जन सुराज 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ता है, तो यह भारतीय राजनीति में वैकल्पिक दलों के लिए एक मॉडल बन सकता है।

भविष्य की संभावनाएँ

2025 का बिहार विधानसभा चुनाव जन सुराज और प्रशांत किशोर के लिए एक बड़ा इम्तिहान होगा। बिहार में राजद, जेडीयू, और बीजेपी जैसे स्थापित दलों के सामने एक नया दल स्थापित करना आसान नहीं होगा।

प्रशांत की रणनीति युवाओं और महिलाओं को केंद्र में रखकर एक नया मतदाता आधार बनाने की है, लेकिन संगठनात्मक ढांचे और वित्तीय संसाधनों की कमी उनकी राह में चुनौती बन सकती है। फिर भी, उनकी डेटा-आधारित रणनीतियाँ और जनसंपर्क कौशल उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाते हैं।

यदि जन सुराज कुछ सीटें जीतने में सफल होता है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है।प्रशांत की भविष्य की रणनीति में राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की संभावना भी है। उनकी गैर-जातिगत और विकास-केंद्रित राजनीति अन्य राज्यों में भी अपील कर सकती है, जहाँ मतदाता पुरानी राजनीति से ऊब चुके हैं।

निजी जीवन

उनके पिता, श्रीकांत पांडेय, एक सरकारी चिकित्सक थे, और उनका बचपन बक्सर में बीता।

प्रशांत ने जाह्नवी दास से शादी की, जो पेशे से डॉक्टर हैं। उनकी मुलाकात यूएन के एक स्वास्थ्य कार्यक्रम में हुई थी। दंपति का एक बेटा है

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