Prayagraj: सरकार ने नहीं पेश की डीएनए रिपोर्ट, नाराज हाईकोर्ट ने यशोदा को दी बेटी से मिलने की इजाजत
Prayagraj:Reliable Media सरकार ने नहीं पेश की डीएनए रिपोर्ट, नाराज हाईकोर्ट ने यशोदा को दी बेटी से मिलने की इजाजत.
इसी मां ने नवजात मिली बच्ची को सात साल तक पाल-पोसकर जीवनदान दिया है। डेढ़ साल पहले बच्ची पर हक जताने वालों के कारण मां-बेटी को जुदा होना पड़ा। कोर्ट ने सरकार से डीएनए रिपोर्ट मांगी, लेकिन शुक्रवार को दाखिल हुई नहीं।
खफा कोर्ट ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जल्द रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।
है। इसी मां ने नवजात मिली बच्ची को सात साल तक पाल-पोसकर जीवनदान दिया है। डेढ़ साल पहले बच्ची पर हक जताने वालों के कारण मां-बेटी को जुदा होना पड़ा। कोर्ट ने सरकार से डीएनए रिपोर्ट मांगी, लेकिन शुक्रवार को दाखिल हुई नहीं। खफा कोर्ट ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जल्द रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ के समक्ष आगरा की एक महिला ने अपनी मानद बेटी की सुपुर्दगी के लिए याचिका दाखिल की है। करीब साढ़े आठ साल पहले एक सर्द रात में किन्नर ने टेढ़ी बगिया इलाके में रहने वाली महिला को यह नवजात बच्ची सौंपी थी। बच्ची को कोई खुले में छोड़ गया था। नवजात के लिए यह महिला यशोदा मां बन गई।
खुद के चार बच्चे होते हुए भी यशोदा ने इस बच्ची को अपनाने में तनिक भी हिचक नहीं दिखाई। कानूनी दांव-पेच का विचार किए बिना उसने बच्ची का तत्काल इलाज कराया और पालन-पोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सात साल तक वह उसके परिवार का अभिन्न अंग रही। स्कूल में दाखिला भी कराया। इस बीच, किन्नर की नीयत खराब हो गई और वह बच्ची को उठा ले गया।
पुलिस और चाइल्ड लाइन की मदद से बच्ची को फर्रुखाबाद से मुक्त कराया गया
पुलिस और चाइल्ड लाइन की मदद से बच्ची को फर्रुखाबाद से मुक्त कराया गया। बाल कल्याण समिति फर्रुखाबाद के यहां बच्ची ने यशोदा को ही अपनी मां के रूप में पहचाना और उनके साथ जाने की इच्छा जाहिर की। बच्ची यशोदा को सौंपी भी गई, लेकिन बाल कल्याण समिति आगरा ने आठ माह बाद ही कमजोर आर्थिक स्थिति का आधार बनाते हुए बच्ची को फिर बाल गृह भेज दिया।
समिति ने तर्क दिया था कि यशोदा की आमदनी इतनी नहीं कि वह बच्ची का पालन-पोषण कर सके। इस फैसले से परेशान यशोदा ने पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के यहां गुहार लगाई, लेकिन बच्ची उसके सुपुर्द नहीं की गई। बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने यह मामला राज्य बाल आयोग के समक्ष उठाया। आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बच्ची को देखभाल के लिए यशोदा को देने का आदेश दिया, लेकिन उसे माना नहीं गया।
धरना दिया, नहीं माने तो आईं हाईकोर्ट
पालनहार मां ने बच्ची को पाने के लिए जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। यहां तक कि बेटी से मिलने पर भी पाबंदी लगा दी गई। आहत यशोदा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल ने दलील दी कि बच्ची ने हर बार यशोदा को ही मां बताते हुए साथ जाने की इच्छा जताई है। आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र तथा शैक्षिक प्रमाण पत्रों में यशोदा ही उसकी मां है।
बीते सात साल से बच्ची उन्हीं के परिवार में रह रही है। सभी से उसका भावनात्मक लगाव है। लिहाजा, बच्ची के लिए यशोदा ही असली मां है और उसका परिवार सर्वोत्तम संरक्षक। हाईकोर्ट ने आगरा प्रशासन से नाराजगी जताते हुए कहा है कि बाल कल्याण समिति ने बाल हित में फैसला नहीं लिया।
सुनवाई के दौरान आया नया माेड़
प्रशासन से रिपोर्ट मांगते ही नया मोड़ तब आया, जब आगरा के नितिन गर्ग ने हाईकोर्ट में दावा किया कि बच्ची के वह जैविक पिता हैं। कहा, वर्ष 2015 में नवजात बच्ची घर से अगवा की गई थी, जिसकी एत्मादपुर थाने में एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। कोर्ट ने नितिन गुप्ता को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने की अनुमति देते हुए डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया।
कोर्ट ने दिन में तीन बार की सुनवाई
बच्ची की मार्मिक कहानी को देखते हुए कोर्ट ने भी मानवीय दृष्टिकोण दिखाया। शुक्रवार सुबह 10ः10 बजे ही कोर्ट ने सरकारी वकील से डीएनए रिपोर्ट के बारे में पूछा। यह रिपोर्ट शुक्रवार को ही आनी थी। नहीं आने की जानकारी पर कोर्ट ने सरकारी वकील को कारण पता करने के लिए समय दिया। 10ः30 बजे सरकारी वकील ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके कोर्ट को बताया कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जानकारी मांगी जा रही है।
कोर्ट ने फिर 12ः15 बजे केस की सुनवाई की। बताया गया कि अभी लैब में जांच नहीं हो पाई है। इससे नाराज कोर्ट ने प्रयोगशाला के अधिकारियों को जांच करके जल्द रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई 29 जनवरी 2024 को होगी। हाईकोर्ट ने यशोदा मां को बड़ी राहत देते हुए जिला प्रोबेशन अधिकारी की मौजूदगी में बच्ची से मिलने की इजाजत दे दी।
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