योगी सरकार में भ्रष्टाचार का नया साया: डिप्टी सीएम के विभाग में IAS Himanshu Kumar पर गंभीर आरोप, विधायकों की शिकायत से सियासी हलचल

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक बार फिर नौकरशाही के गलियारों में भ्रष्टाचार का काला बादल मंडराने लगा है। इस बार निशाने पर हैं ग्रामीण अभियंत्रण विभाग (Rural Engineering Services) और ग्राम्य विकास संस्थान (Gramya Vikas Sansthan) के अपर मुख्य सचिव (Additional Chief Secretary – ACS) हिमांशु कुमार (IAS Himanshu Kumar )

एक 1997 बैच के आईएएस अधिकारी, जो लंबे समय से राज्य की ग्रामीण विकास योजनाओं की कमान संभाल रहे हैं, पर अब विधायकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोप इतने संगीन हैं कि टेंडर प्रक्रिया में धांधली, कर्मचारियों पर दबाव, और राज्य को करोड़ों का वित्तीय नुकसान पहुंचाने की बात कही गई है।

यह मामला सिर्फ एक अधिकारी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है। खासकर तब जब यह विभाग सीधे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के पास है।

शिकायत करने वाले विधायक समाजवादी पार्टी (SP) के हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है कि क्या यह विपक्ष का राजनीतिक हमला है या सच्चाई का आईना। लेकिन सवाल यह भी है कि ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाने वाली योगी सरकार इस पर क्या कार्रवाई करेगी?

आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।

आरोपों का पूरा ब्योरा: टेंडर से लेकर तबादलों तक की साजिश?फिरोजाबाद के जसराना विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक सचिन यादव और आजमगढ़ के दीदारगंज से विधायक कमलाकांत राजभर ने 25 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखा।

इस पत्र में हिमांशु कुमार पर उनके करीबी सहयोगी बसंत बघेल के माध्यम से विभाग में भ्रष्टाचार फैलाने का आरोप लगाया गया है। विधायकों के अनुसार, बसंत बघेल एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो अधिकारी के इशारों पर काम करते हैं और ठेकेदारों से कमीशन वसूलते हैं।

पत्र में विस्तार से टेंडर प्रक्रिया की धांधली का जिक्र है। Serious allegations against IAS Himanshu Kumar

आरोप है कि:

  • ठेकेदारों को टेंडर डालने से रोका जाता है: योग्य और अनुभवी ठेकेदारों को तकनीकी खामियों का बहाना बनाकर बोली लगाने से रोका जाता है। इससे प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है और चुनिंदा फर्मों को फायदा पहुंचता है।

  • मनचाही फर्मों को काम दिलाने के लिए टेंडर मैनेजमेंट: टेंडर की शर्तें ऐसी तय की जाती हैं कि केवल पसंदीदा कंपनियां ही योग्य साबित हों। उदाहरण के तौर पर, हाल ही में ग्रामीण सड़क निर्माण के एक टेंडर में न्यूनतम अनुभव की शर्त को अचानक बढ़ा दिया गया, जिससे कई स्थानीय ठेकेदार बाहर हो गए।

  • टेंडर रद्द करने का खेल: अगर पसंदीदा फर्म को काम न मिले, तो पूरे टेंडर को रद्द कर दिया जाता है। इससे राज्य सरकार को पुन: टेंडर प्रक्रिया पर अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है और विकास कार्य रुक जाते हैं। विधायकों का दावा है कि पिछले एक वर्ष में कम से कम 15 ऐसे टेंडर रद्द हुए हैं, जिससे करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।

इसके अलावा, पत्र में कर्मचारियों और जूनियर अफसरों पर दबाव बनाने की बात कही गई है। आरोप है कि विरोध करने वालों को ट्रांसफर की धमकी दी जाती है, और कई मामलों में तत्काल तबादला भी कर दिया जाता है।

एक उदाहरण के तौर पर, फिरोजाबाद जिले के एक जिला अभियंता का नाम लिया गया है, जिन्हें टेंडर में अनियमितता की शिकायत करने पर अन्य जिले में भेज दिया गया।

विधायक सचिन यादव ने पत्र में लिखा, “यह सिस्टम अब विकास का नहीं, बल्कि व्यक्तिगत हितों का केंद्र बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, पुल और अन्य योजनाएं प्रभावित हो रही हैं, जो अंततः गरीब जनता को नुकसान पहुंचा रही हैं।”ये आरोप कोई नई बात नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में ग्रामीण विकास विभाग हमेशा से टेंडर घोटालों का केंद्र रहा है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) जैसी स्कीम्स में अक्सर अनियमितताओं की शिकायतें आती रहती हैं।

लेकिन इस बार मामला हाई-प्रोफाइल है क्योंकि आरोपी अधिकारी डिप्टी सीएम के सीधे अधीन हैं।

विधायकों की भूमिका: विपक्ष का हथियार या जनहित की लड़ाई?

शिकायत करने वाले दोनों विधायक समाजवादी पार्टी के हैं, जो वर्तमान भाजपा सरकार की प्रमुख विपक्षी ताकत हैं। सचिन यादव, जसराना से विधायक, एक युवा और आक्रामक नेता के रूप में जाने जाते हैं। वे ग्रामीण विकास मुद्दों पर अक्सर सदन में आवाज उठाते हैं।

यादव ने बताया कि यह शिकायत उनके क्षेत्र के ठेकेदारों और प्रभावित लोगों की ओर से आई है। “हमने कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं रखा। बस, विकास कार्यों में बाधा डालने वाले तत्वों को उजागर किया है,” उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा।

दूसरी ओर, कमलाकांत राजभर आजमगढ़ के दीदारगंज से हैं, जहां ग्रामीण विकास योजनाओं का विशेष महत्व है। राजभर समुदाय से आने वाले इस विधायक ने पूर्व में भी नौकरशाही पर सवाल उठाए हैं।

दोनों ने पत्र में स्पष्ट कहा है कि वे जांच की मांग कर रहे हैं, न कि राजनीतिक लाभ के लिए। लेकिन सियासी जानकारों का मानना है कि यह भाजपा सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास हो सकता है, खासकर आगामी स्थानीय निकाय चुनावों को देखते हुए।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर ट्वीट किया है: “यूपी में भ्रष्टाचार का जाल इतना गहरा है कि अब डिप्टी सीएम के विभाग तक पहुंच गया। योगी जी, कब होगी सफाई?” यह ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और विपक्ष को एक नया मुद्दा दे दिया।

विभाग का परिचय: ग्रामीण विकास का इंजन, लेकिन घोटालों का शिकार

ग्रामीण अभियंत्रण विभाग उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, पुल, स्कूल भवन और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण देखता है।

इसके अंतर्गत PMGSY, MGNREGA और स्वच्छ भारत मिशन जैसी केंद्रीय योजनाएं आती हैं। वर्तमान में विभाग का बजट 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए क्रूशियल है।

ग्राम्य विकास संस्थान इस विभाग का एक हिस्सा है, जो ग्रामीण संस्थागत विकास पर फोकस करता है।

ACS हिमांशु कुमार 2023 से इस पद पर हैं। वे 1997 बैच के आईएएस हैं और पहले लखनऊ, प्रयागराज और अन्य जिलों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा चुके हैं। उनके कार्यकाल में विभाग ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जैसे 5,000 किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों का निर्माण।

लेकिन अब ये आरोप उनकी छवि पर सवाल खड़े कर रहे हैं।विभाग के मंत्री डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हैं, जो भाजपा के कद्दावर नेता हैं।

यूपी नौकरशाही का काला इतिहास: भ्रष्टाचार के साये में विकासउत्तर प्रदेश की नौकरशाही पर भ्रष्टाचार के आरोप कोई नई बात नहीं। राज्य में आईएएस अधिकारियों पर घोटालों के केस लंबे समय से चलते आ रहे हैं।

2017 में योगी सरकार आने के बाद ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई गई, जिसके तहत कई बड़े घोटाले उजागर हुए।

उदाहरण के तौर पर:

  • नोएडा पावर कंपनी घोटाला (2019): पूर्व आईएएस आर.के. अरोड़ा पर 2,000 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा।
  • पीडब्ल्यूडी टेंडर स्कैम (2022): ग्रामीण सड़क निर्माण में 500 करोड़ की अनियमितता पाई गई, जिसमें कई इंजीनियर फंसे।
  • MGNREGA फंड डायवर्जन (2023): पूर्वी यूपी में 300 करोड़ के फंड का गबन, जिसमें जूनियर अफसरों की संलिप्तता साबित हुई।

लेकिन सीनियर आईएएस अधिकारियों जैसे IAS Himanshu Kumar पर कार्रवाई कम ही होती है।

केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में यूपी में भ्रष्टाचार के 1,200 से अधिक केस दर्ज हुए, लेकिन केवल 10% में सीनियर अफसरों पर एक्शन लिया गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक संरक्षण और जटिल जांच प्रक्रिया इसके पीछे कारण हैं।

पूर्व मुख्य सचिव अनूप चंद्रा कहते हैं, “नौकरशाही में भ्रष्टाचार सिस्टमेटिक है। टेंडर प्रक्रिया को डिजिटल बनाने से सुधार हुआ है, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप अभी भी समस्या है।” एक अन्य रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हिमांशु कुमार जैसे अफसरों पर आरोप लगना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अगर साबित हो गए तो यह पूरे कैडर के लिए सबक होगा।

“राजनीतिक आयाम: क्या विपक्ष को मिलेगा मुद्दा?

यह मामला सियासत के मैदान में भी गरमा रहा है। भाजपा के प्रवक्ता ने इसे “विपक्ष का मनगढ़ंत आरोप” करार दिया है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कहा, “हमारी सरकार पारदर्शिता की मिसाल है। हर शिकायत की जांच होगी।” लेकिन विपक्ष इसे सरकार की कमजोरी बता रहा है।

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया: “यूपी में भ्रष्टाचार का राज चल रहा है। डिप्टी सीएम के विभाग में यह सब कैसे संभव?

“सोशल मीडिया पर #HimanshuKumarCorruption हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। X (पूर्व ट्विटर) पर सैकड़ों पोस्ट्स में लोग सरकार से तत्काल जांच की मांग कर रहे हैं।

एक यूजर ने लिखा: “योगी जी का ‘ठोक दो’ अब नौकरशाहों पर कब लागू होगा?”आगामी महानगर निगम चुनावों को देखते हुए यह मुद्दा भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं की असफलता विपक्ष को वोटों में तब्दील कर सकती है।

सरकार की प्रतिक्रिया: जांच का ऐलान या खामोशी?

मुख्यमंत्री कार्यालय से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन स्रोतों के अनुसार, पत्र मिलने के बाद मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने विभागीय अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है।

लोकायुक्त या सतर्कता विभाग से जांच के आदेश दिए जा सकते हैं। अगर आरोप साबित हुए, तो हिमांशु कुमार का सस्पेंशन तय माना जा रहा है।

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने एक कार्यक्रम में संकेत दिए: “भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी है। कोई भी दोषी बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन उनके विभाग में यह घोटाला होना उनकी छवि को धक्का पहुंचा सकता है।

मौर्य, जो ओबीसी समुदाय से हैं, ग्रामीण विकास को अपनी राजनीतिक पूंजी मानते हैं।

प्रभावित पक्षों की आवाज: ठेकेदारों और जनता का दर्द

फिरोजाबाद और आजमगढ़ के ठेकेदारों से बातचीत में पता चला कि टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी से छोटे व्यवसायी प्रभावित हो रहे हैं। एक स्थानीय ठेकेदार ने कहा, “हमारे पास अनुभव है, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना। बसंत बघेल का नाम तो सब जानते हैं।” ग्रामीणों का कहना है कि सड़कें टूटी रहती हैं और योजनाएं कागजों पर ही सिमट जाती हैं।

एक सर्वे के अनुसार, यूपी के 40% ग्रामीण मतदाता विकास योजनाओं की गुणवत्ता से असंतुष्ट हैं। यह मामला अगर अनसुलझा रहा, तो जनता का विश्वास और कम हो सकता है।

निष्कर्ष: सुधार की दिशा में कदम?

हिमांशु कुमार का मामला यूपी नौकरशाही के लिए एक टर्निंग पॉइंट हो सकता है। अगर सरकार त्वरित जांच कर कार्रवाई करती है, तो यह ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की सच्चाई साबित करेगी। अन्यथा, यह विपक्ष को हवा देगा। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि टेंडर प्रक्रिया को पूरी तरह ई-टेंडरिंग पर ले जाया जाए और थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य हो।

अंततः, यह सवाल जनता के सामने है: क्या उत्तर प्रदेश का विकास भ्रष्टाचार के जाल से मुक्त हो पाएगा? हिमांशु कुमार के मामले में सरकार का रुख ही इसका जवाब देगा। फिलहाल, लखनऊ के गलियारों में सन्नाटा है, लेकिन तूफान आने वाला है।

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