अंध भक्तो को करारा जवाब – शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी ने ABVP से छात्र संघ चुनाव लड़ा था
छात्र संघ का चुनाव काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तारे लड़ा था.
शंकराचार्य स्वामी और मुक्तेश्वर आनंद सरस्वती जी ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने छात्र संघ का चुनाव काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तारे लड़ा था.
राष्ट्रीय संघ सेवक संघ से संबंधित एक व्यक्ति ने जब उन्हें यह कहते हुए कटाक्ष किया कि उनका संबंध छात्र संघ इकाई एनएसयूआई से है तो उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने छात्र संघ का चुनाव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले लड़ा था उन्होंने यह भी कहा था कि अखिल विद्यार्थी विद्यार्थी परिषद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक स्वतंत्र संगठन है जो छात्रों के बीच में नेतृत्व पैदा करने के लिए जाना जाता है .
उनके इस करारे जवाब के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता की बोलती बंद हो गई.
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— Bodhisattva Rakesh Pandey Isfahan (@RakeshIsfahan) February 4, 2025
धर्म या सनातन धर्म क्या है?
धर्म, मनुष्य के जीवन को स्वभाव के विपरीत ऊंचाई प्रदान करने के लिए प्रवर्तित हुआ है। मनुष्य का स्वभाव पानी की तरह है, जो नीचे की तरफ लुढ़कता है। ऊपर उठने के लिए प्रयास करना पड़ता है। वह जो प्रयास है, उसी का नाम धर्म है। जिसे सदा विद्यमान रहने के कारण सनातन कहते हैं।
सनातन धर्म के उद्देश्य क्या हैं?
मनुष्य को जीवन में नीचे जाने के लिए किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती है, जबकि ऊंचा उठने के लिए प्रयास की जरूरत होती है। जब हम ऊंचे उठते हैं तो सुख मिलता है और जब नीचे गिरते हैं, तो दुख मिलता है। हमें गिरने से बचना और ऊपर उठने में मदद करना ही धर्म का उद्देश्य है।
सनातन धर्म में मोक्ष का क्या मतलब है?
जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना ही मोक्ष है। सनातन धर्म में यह माना जाता है कि कर्मों के अनुरूप जीव को अलग-अलग योनियों में जन्म लेना पड़ता है और सुख-दुख भोगने पड़ते हैं। जीव, शरीर में रहते हुए किए गए कर्मों का फल भोगने के लिए भटकता रहता है। इस भटकाव से मुक्ति ही मोक्ष है।
क्या देवी-देवता और ईश्वर एक हैं? देवता का क्या मतलब है?
दान करने से देवता हैं। हमारे मन में कामनाएं और इच्छाएं होती हैं। ये कामनाएं या इच्छाएं तरह-तरह की होती हैं। इन इच्छाओं या कामनाओं में जो अच्छी इच्छाएं होती हैं, उनको पूरा कर देने वाली जो शक्ति है वही देवता हैं, जबकि ईश्वर सृष्टि का संचालन करता है। परमात्मा सबमें प्रतिष्ठित है। ब्रह्म वह है, जिससे सब कुछ है, जिसमें सबकुछ समाविष्ट है। इस तरह से अलग-अलग शब्दावली से उसी एक शक्ति के अलग-अलग रूपों को संबोधित किया जाता है।
क्या कर्मकांड भी धर्म है?
कर्मकांड धर्म है। जैसे कोई फल है, उसका छिलका और गुठली होते हैं। छिलका खाया तो नहीं जाता, लेकिन गूदे को संरक्षित करने के लिए उसके साथ लगा रहता है। उसी तरह से हमारा जो अंतः करण है, असल में धर्म उसमें निवास करता है, लेकिन वाह्य आवरण के द्वारा उसको हम संरक्षित करते हैं। जब हम ऐसे पुण्य क्षेत्र (महाकुंभ) में आते हैं, त्याग-तपस्या करते हैं, नियमों का आचरण करते हैं, संतों की संगति करते हैं तो अंदर वाला हमारा जो मन है, वह ज्यादा आध्यात्मिक हो जाता है। बाहर की जो हमारी जो क्रियाएं हैं, कर्म हैं, उसे हमारे अंदर वाले को सपोर्ट मिलता है, इसलिए इनका भी महत्व है।
रीति-रिवाज और रूढ़िवाद में अंतर कैसे करें?
रूढ़िवाद अपने-आप पनप जाता है। रीति तो किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा चलाई जाती है। रीतिकाव्य होते हैं, अलग-अलग समय में जिनका कोई प्रवर्तन कर देता है तो उसके पदचिह्नों पर लोग चलने लगते हैं। जैसे हमारे शंकराचार्य आए ढाई हजार साल पहले, जिनके पीछे आज भी लोग चलते जा रहे हैं। दूसरे भी महापुरुष आए जैसे कि मध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य आदि। उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी कि उनको लोग भूल नहीं पा रहे हैं और उनके पीछे-पीछे चलते जा रहे हैं।
व्रत और त्योहार में क्या अंतर है?
व्रत का मतलब है कि एक संकल्प, निष्ठा कि अब हम यह करेंगे। किसी मामले का विनिश्चय। त्योहार का मतलब है उत्सव। जिस समय कोई पर्व होता है, उस समय हम व्रत रहते हुए जो भजन, भंडारा आदि करते हैं वह उत्सव है।
महाकुंभ में स्नान के लिए करोड़ों की भीड़ हो रही। क्या स्नान से वाकई पाप धुल जाते हैं?
जल-जल में अलग-अलग तरह की शक्ति है। जो हमारे घर का पानी है, उसमें हमारे शरीर को धो देने की शक्ति है। ठीक उसी तरह से गंगा आदि नदियों का जो पवित्र जल है, उसमें मन के मैल को धोने की शक्ति है।
कहा जाता है कि सबकुछ ईश्वर करते हैं तो क्या हम जो गलत करते हैं, वे भी वही करते हैं? ईश्वर हैं तो गलत क्यों करते या कराते हैं?
सब कुछ ईश्वर करते हैं, लेकिन ईश्वर ने क्या किया हुआ है कि थोड़ा सा ईश्वरत्व हमको भी दे दिया है। थोड़ा सा अपने स्वयं को ईश्वर मान करके, हम अपने मन का भी कर लेते हैं। जितना हम अपने मन का कर लेते हैं, उसका हमको भोगना पड़ता है। जो ईश्वर से नियंत्रित है उसका हमको भोगना नहीं पड़ता।
जैसे ईसाई धर्म में पोप होते हैं, क्या हिंदू धर्म में भी कोई एक शख्स है, जिसकी बात सभी मानें?
उनके यहां एक संरचना है। उनके यहां भी कई पंथ हैं। जो पोप हैं वह एक पंथ के नेता हैं। पोप पूरे विश्व का नेतृत्व करता है। उसके नीचे भी कई धर्मगुरु होते हैं। हमारे यहां ऐसी कोई संरचना नहीं है, लेकिन हमारा जो सिद्धांत है, वह सिद्धांत सार्वभौम है, सार्वकालिक है, इसलिए हमको सर्वोच्च कहा जाता है। हमारी ऐसी कोई संरचना नहीं है कि कोई हमारे नीचे है, इसलिए हम सर्वोच्च हैं।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी