गोवर्धन पूजा की भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू जनमानस में महत्व
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और साथ ही गाय बैलों का श्रृंगार उनकी भी विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि गोवर्धन पूजा द्वापर युग से ही की जा रही है। गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन की जाती है। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी और इंद्र देव के अहंकार को तोड़ा था। उसी समय से गोवर्धन के रूप में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। आइए इसी सन्दर्भ में ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी से जानते हैं गोवर्धन पूजा 2021 की तिथि, गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त, गोवर्धन पूजा का महत्व, गोवर्धन पूजा की विधि और गोवर्धन पूजा की कथा।
गोवर्धन पूजा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त:
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी बताते हैं, ”इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर को होगी। सुबह 5 बज कर 28 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है। दूसरा मुहूर्त शाम को 5 बजकर 16 मिनट से 5 बजकर 43 मिनट तक है। बहुत से स्थानों पर इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी मनाया जाता है।”
गोवर्धन पूजा का महत्व:
गोवर्धन पूजा दीपावली के दूसरे दिन की जाती है। इस पर्वत को भगवान कृष्ण के रूप में ही पूजा जाता है। गोवर्धन ब्रज में स्थित एक छोटा सा पहाड़ है लेकिन इसकी मान्यता बहुत अधिक है। गोवर्धन पर्वत को पर्वतों का राजा कहा जाता है। यह पर्वत द्वापर युग से ही ब्रज में स्थित है इसलिए भी इसका काफी महत्व है। मान्यताओं के अनुसार यमुना नदी ने तो समय- समय पर अपनी दिशा बदली है लेकिन गोर्वधन पर्वत युगों से अपने एक ही स्थान पर आज भी अडिग खड़ा है। माना जाता है कि पृथ्वीं पर इसके समान कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज के निवासियों की रक्षा और इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया था। इस दिन गौ माता की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है क्योंकि गौ माता से ही हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए सभी चीजें प्राप्त होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी के अनुसार गोवर्धन पूजा विधि:
- गोवर्धन पूजा के दिन सुबह उठकर शरीर पर तेल की मालिश अवश्य करें और इसके बाद ही स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद अपने घर के मुख्य द्वार या आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान की आकृति , गोवर्धन पर्वत और उनके आस पास ग्वालों और पेड़ पौधों की आकृति भी बनाएं।
- यह सब आकृति बनाने के बाद बीच में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा रखकर ”गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव:” मंत्र का जाप करके भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें।
- मंत्र जाप के बाद भगवान कृष्ण को दूध, दही, घी, नैवैद्य, फल, मिष्ठान और पंचामृत चढ़ाएं।
- इसके बाद भगवान श्री कृष्ण, गोवर्धन पर्वत, ग्वालों और पेड़ पौधों का पूरे विधि विधान से पूजन करें।
- पूजन के बाद भगवान श्री कृष्ण को मिठाई का भोग लगाएं और स्वयं भी इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
- इस दिन गाय और बैल का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। अत: पहले गाय और बैल को स्नान कराएं और उनका श्रृंगार करें।
- अगर आपके यहां गाय और बैल नहीं है तो आप उनकी तस्वीर का पूजन भी कर सकते हैं।
- इसके बाद ”लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।” का जाप करें।
- अंत में भगवान कृष्ण की आरती उतारें और गोवर्धन पर्वत पर गायों को चलवाएं।
गोवर्धन पूजा की कथा:
द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा का विधान था। एक बार सभी ब्रजवासी इंद्र देवता की पूजा कर रहे थे। उस समय भगवान श्री कृष्ण पूजा स्थल पर पहुंचे और इस पूजा के बारे में पूछा। ब्रजवासियों ने भगवान श्री कृष्ण को बताया कि यहां इंद्र देव की पूजा की जा रही है। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आप इंद्र देव की पूजा क्यों करते हैं। वर्षा करना तो उनका कर्म है। वह तो सिर्फ अपना काम कर रहे हैं। लेकिन गोवर्धन पर्वत से हमारी गायों को भोजन और संरक्षण प्राप्त होता है। इसलिए आपको उनकी पूजा करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण की बात सुनकर सभी लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। जिसे देख इंद्र देव क्रोधित हो उठे और बादलों को यह आदेश दिया कि गोकुल को पूरी तरह से नष्ट कर दे। जिसके बाद गोकुल में भारी वर्षा होने लगी। यह देखकर सभी गोकुलवासी बहुत डर गए।
यह देखकर भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत के पास चलने के लिए कहा। भगवान श्री कृष्ण के साथ सभी गोकुलवासी वहां पर पहुंचे और भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका उंगली से उठा लिया और सभी गोकुलवासियों के प्राणों की रक्षा की। यह देखकर इंद्र ने अपने पूरे बल का प्रयोग किया लेकिन भगवान श्री कृष्ण के आगे उनकी एक न चली। जिसके बाद इंद्र को यह ज्ञात हुआ कि यह तो स्वंय नारायण है। इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से अपने इस अपराध के लिए क्षमा मांगी। उसी दिन से गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी।
हमारे देश में गोवर्धन पूजा के प्रकार:
आस्था हमेशा से ही भारत की रंगीन विरासत और संस्कृति की धरोहरों में से एक रही है और गोवर्धन पूजा उनमें से एक है। गोवर्धन पूजा को देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य नामों से भी मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे लोग भगवान विष्णु के अवतार, भगवान वामन द्वारा राजा बाली के वरदान का जश्न मनाने के लिए इस दिन को बाली प्रतिपदा के रूप में मनाते हैं। कुछ हिस्सों में इस पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में मनाया जाता है, जहां अनाज, बेसन और पत्तेदार सब्जियों से बने खाद्य पदार्थों को पेश किया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी के अनुसार गोवर्धन पूजा पर क्या न करें: - गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा भूलकर भी बंद कमरे में न करें क्योंकि गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा खुले स्थान पर ही की जाती है।