मंगल पांडे Mangal Pandey ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया – 29 मार्च 1857
मंगल पांडे Mangal Pandey ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया – 29 मार्च 1857मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे.
उनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ शासन बुरी तरह हिल गया. हालाँकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा दिया पर मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए उसने अंग्रेजी हुकुमत को 100 साल के अन्दर ही भारत से उखाड़ फेका.
मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही थे. सन 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फ़ैल गया.
मंगल पांडे Mangal Pandey अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी
अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी पर मंगल पांडे प्रत्येक भारतीय के लिए एक महानायक हैं.भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से सम्बंधित अफवाह ने आग में घी का कार्य किया.
9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया. इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ.
मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था.
इसके बाद पांडे ने एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को मौत के घाट उतार दिया जिसके बाद मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया.
इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ और मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया.
Mangal Pandey अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार
आक्रमण करने से पहले मंगल ने अपने अन्य साथियों से समर्थन का आह्वान भी किया था पर डर के कारण किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया.उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गयी।
फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फाँसी दी जानी थी, पर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी दे दी गई.
29 मार्च का दिन भारत के इतिहास में बड़ा दिन माना जाता है. आज ही के दिन 1857 में मंगल पांडे ने भारत की आजादी के विद्रोह ही पहली गोली चलाई थी.
की क्रांति के पीछे कारतूस ने अहम भूमिका निभाई थी। दरअसल, जो एंफील्ड बंदूक सिपाही इस्तेमाल करते थे, उसमें कारतूस भरने के लिए दांतों का इस्तेमाल करना पड़ता था। पहले कारतूस को काटकर खोलना पड़ता था और उसके बाद उसमे भरे हुए बारूद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था।
पानी की सीलन से बचाने के लिए कारतूस के बाहर चर्बी लगी होती थी और इसी चर्बी को लेकर विवाद हुआ था। सिपाहियों में यह अफवाह फैल गई थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई जाती है। ऐसे में सिपाहियों को लगा की अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं।
मंगल पांडे Mangal Pandey ने खुद को गोली मार ली
इसी मुद्दे को आधार बनाते हुए बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया। छावनी के परेड ग्राउंड में मंगल पांडे ने लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट मेजर ह्यूसन की हत्या कर दी थी।
इसके बाद में मंगल पांडे ने खुद को गोली मार ली, लेकिन वे सिर्फ घायल ही हुए थे। बाद में 7 अप्रैल, 1957 को मंगल पांडे को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी।
बैरकपुर छावनी से शुरू हुआ विद्रोह पूरे देश में फैल गया, जिसके बाद देशभर में लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया। इस विद्रोह के दौरान कई जगहों पर हिंसा हुई। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने में सफल हुई।