सऊदी अरब में 8000 साल पुराना मंदिर और प्राचीन सभ्यता की खोज: एक ऐतिहासिक खुलासा

8000 year old temple in Saudi Arabia
8000 year old temple in Saudi Arabia

**सऊदी अरब में 8000 साल पुराना मंदिर और प्राचीन सभ्यता की खोज: एक ऐतिहासिक खुलासा**

सऊदी अरब, जिसे इस्लाम का पवित्र केंद्र माना जाता है, जहां मक्का और मदीना जैसे पवित्र स्थल मौजूद हैं, वहां एक ऐसी खोज हुई है, जिसने पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया है। सऊदी अरब की राजधानी रियाद के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अल-फाओ (Al-Faw) क्षेत्र में पुरातत्वविदों को 8000 साल पुराना एक मंदिर मिला है।

यह मंदिर नियोलिथिक काल (नवपाषाण युग) का बताया जा रहा है, जो इस क्षेत्र में प्राचीन सभ्यता और धार्मिक परंपराओं की मौजूदगी का प्रमाण देता है। इस खोज ने न केवल सऊदी अरब के इतिहास को नया आयाम दिया है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि इस क्षेत्र में हजारों साल पहले मंदिर संस्कृति और मूर्तिपूजा की परंपरा थी। यह खोज सऊदी अरब के हेरिटेज कमीशन और एक अंतरराष्ट्रीय पुरातत्वविदों की टीम के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग कर इस प्राचीन स्थल की खोज की।

खोज की पृष्ठभूमि

सऊदी अरब की सरकार ने साल 2022 में घोषणा की थी कि रियाद के दक्षिण-पश्चिम में, वादी अल-दावासिर और नजरान शहरों के बीच, अल-फाओ क्षेत्र में एक पुरातात्विक स्थल की खोज हुई है। इस स्थल की खुदाई और सर्वेक्षण का काम पिछले 40 वर्षों से सऊदी अरब के पुरातत्वविद् डॉ. अब्दुलरहमान अल-अंसारी के नेतृत्व में किंग सऊद विश्वविद्यालय के सहयोग से चल रहा था।

इस खोज में एक मल्टीनेशनल टीम ने हाई-क्वालिटी एरियल फोटोग्राफी, ड्रोन फुटेज, रिमोट सेंसिंग, लेजर स्कैनिंग, और जियोफिजिकल सर्वे जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया। इस सर्वेक्षण के दौरान तुवाईक पर्वतमाला की चोटी पर एक रॉक-कट मंदिर की खोज हुई, जो इस क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अवशेष है।

यह मंदिर, जिसे खशेम कारियाह के नाम से जाना जाता है, अल-फाओ क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। इस स्थल पर मंदिर के साथ-साथ 2,807 कब्रें, धार्मिक शिलालेख, और एक जटिल सिंचाई प्रणाली के अवशेष भी मिले हैं। यह खोज इस बात का प्रमाण है कि नवपाषाण काल में इस क्षेत्र में एक उन्नत सभ्यता फल-फूल रही थी, जो धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र थी।

मंदिर की विशेषताएं

खुदाई के दौरान मिला यह मंदिर पत्थरों से बना हुआ है, जिसे तुवाईक पर्वत की चट्टानों को काटकर बनाया गया था। मंदिर के अंदर एक पत्थर की वेदी (altar) और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े अवशेष मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि उस समय के लोग पूजा-पाठ और अनुष्ठानों में संलग्न थे।

कुछ शिलालेखों में ‘कहल’ नामक एक देवता का उल्लेख है, जिसे अल-फाओ के लोग पूजते थे। यह मंदिर पूरे पुरास्थल के केंद्र में स्थित है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह उस समय के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक केंद्र था। मंदिर की संरचना को देखकर यह अनुमान लगाया गया है कि इसे रेगिस्तान की भीषण गर्मी और कठोर पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाया गया था।

इसकी दीवारें और छतें इस तरह से डिज़ाइन की गई थीं कि वे प्राकृतिक आपदाओं और गर्मी से बचाव कर सकें। मंदिर के आसपास मिले अवशेषों में कुछ धार्मिक चित्र और शिलालेख भी शामिल हैं, जो उस समय की धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को दर्शाते हैं। विशेष रूप से, एक शिलालेख में ‘माधेकर बिन मुनैम’ नामक व्यक्ति का उल्लेख है, जो उस समय की सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से जुड़ा हो सकता है।

प्राचीन सभ्यता और सिंचाई प्रणाली

इस पुरातात्विक स्थल की खोज ने यह भी उजागर किया है कि अल-फाओ क्षेत्र में 8000 साल पहले एक सुनियोजित शहर बसा हुआ था। इस शहर में चार टावरों के साथ एक केंद्रीकृत संरचना थी, जो उस समय की उन्नत वास्तुकला का प्रतीक है।

सबसे आश्चर्यजनक खोज इस क्षेत्र की जटिल सिंचाई प्रणाली है, जिसमें नहरें, पानी के कुंड, और सैकड़ों गड्ढे शामिल थे। ये गड्ढे और नहरें बारिश के पानी को एकत्र करने और उसे खेतों तक पहुंचाने के लिए बनाए गए थे। यह दर्शाता है कि उस समय के लोग रेगिस्तान जैसे कठिन पर्यावरण में भी पानी के संरक्षण और उपयोग की उन्नत तकनीकों से परिचित थे।

इस सिंचाई प्रणाली ने न केवल खेती को संभव बनाया, बल्कि एक स्थायी और समृद्ध समाज की नींव भी रखी। पुरातत्वविदों का मानना है कि इस तरह की उन्नत तकनीकों का उपयोग उस समय के लोगों की बुद्धिमत्ता और संसाधन प्रबंधन की गहरी समझ को दर्शाता है।

इसके अलावा, इस क्षेत्र में मिले 2,807 कब्रों को छह अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जो विभिन्न समयावधियों से संबंधित हैं। इन कब्रों से उस समय की सामाजिक संरचना और अंत्येष्टि परंपराओं के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

इस खोज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सऊदी अरब में नवपाषाण काल के दौरान मंदिर संस्कृति और मूर्तिपूजा की परंपरा की पुष्टि करता है। मंदिर और उससे जुड़े अवशेष यह दर्शाते हैं कि अल-फाओ के लोग धार्मिक अनुष्ठानों में गहरी आस्था रखते थे।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस मंदिर में की जाने वाली पूजा भारतीय मंदिरों की परंपराओं से मिलती-जुलती हो सकती है, क्योंकि यज्ञ वेदी की दिशा और संरचना भारतीय मंदिरों की वेदियों से समानता रखती है।

हालांकि, इस दावे की पुष्टि के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में मिले धार्मिक शिलालेख और चित्र उस समय की धार्मिक और सांस्कृतिक समझ को दर्शाते हैं। जबल लाहक अभयारण्य में मिला एक शिलालेख ‘कहल’ देवता का उल्लेख करता है, जो उस समय के लोगों की धार्मिक मान्यताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

यह खोज सऊदी अरब के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ती है और यह सवाल उठाती है कि क्या प्राचीन काल में इस क्षेत्र में हिंदू सभ्यता का प्रभाव था।

सऊदी अरब का आधुनिक संदर्भ

आज सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है, जहां मंदिरों के निर्माण पर प्रतिबंध है। हिंदू अपने घरों के अंदर ही पूजा-पाठ कर सकते हैं। हालांकि, पड़ोसी देश संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में हाल ही में एक भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन किया गया है, जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समर्पित किया था।

इस संदर्भ में, सऊदी अरब में 8000 साल पुराने मंदिर की खोज और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यह इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास को उजागर करती है। सऊदी अरब के हेरिटेज कमीशन का कहना है कि यह खोज देश की सांस्कृतिक विरासत को समझने और संरक्षित करने के लिए की गई थी।

कमीशन का लक्ष्य है कि इस तरह की खोजों के माध्यम से सऊदी अरब के लोगों को उनकी प्राचीन विरासत के बारे में जानकारी दी जाए और इसे विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया जाए। इस पुरातात्विक स्थल पर अभी भी खुदाई और शोध का काम जारी है, और विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में और भी महत्वपूर्ण खोजें हो सकती हैं।

वैश्विक प्रतिक्रियाएं और सोशल मीडिया

इस खोज ने न केवल पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से वायरल हुई है। एक्स (X) पर कई यूजर्स ने इस खोज को सनातन धर्म की प्राचीनता और वैश्विक प्रभाव का प्रमाण बताया है। कुछ यूजर्स ने इसे “सनातन धर्म का झंडा” लहराने की संज्ञा दी, जबकि अन्य ने इसे एक ऐतिहासिक खुलासा माना, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

हालांकि, कुछ पोस्ट्स में इस खोज को हिंदू धर्म से जोड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन पुरातत्वविदों ने अभी तक इस दावे की पुष्टि नहीं की है कि यह मंदिर विशेष रूप से हिंदू धर्म से संबंधित था।

ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व

यह खोज सऊदी अरब के इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अल-फाओ, जो कभी किंडा साम्राज्य की राजधानी थी, अब पुरातात्विक अध्ययनों का केंद्र बन गया है। इस क्षेत्र में मिले अवशेषों से यह स्पष्ट होता है कि हजारों साल पहले यहां एक समृद्ध और उन्नत सभ्यता थी, जो धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक रूप से सक्रिय थी।

मंदिर, कब्रें, और सिंचाई प्रणाली के अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि उस समय के लोग न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में विश्वास रखते थे, बल्कि उनके पास पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाने की उन्नत तकनीकें भी थीं। इस खोज ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या प्राचीन काल में अरब प्रायद्वीप में हिंदू सभ्यता का प्रभाव था।

कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राचीन अरब की कई जातियां, जैसे यजीदी, सबाइन, और कुरैश, हिंदू धर्म की परंपराओं से प्रभावित थीं। हालांकि, इस दावे की पुष्टि के लिए और अधिक पुरातात्विक और ऐतिहासिक शोध की आवश्यकता है।

भविष्य की संभावनाएं

सऊदी अरब के हेरिटेज कमीशन ने कहा है कि अल-फाओ में शोध और खुदाई का काम जारी रहेगा। इस क्षेत्र में और भी कई रहस्य छिपे हो सकते हैं, जो सऊदी अरब के प्राचीन इतिहास को और गहराई से उजागर कर सकते हैं।

इस खोज ने न केवल सऊदी अरब, बल्कि पूरे विश्व के पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित किया है। यह मंदिर और उससे जुड़े अवशेष विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

निष्कर्ष

सऊदी अरब में 8000 साल पुराने मंदिर की खोज एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो इस क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता और धार्मिक परंपराओं को उजागर करती है। यह मंदिर, जो नियोलिथिक काल का है, अल-फाओ क्षेत्र में एक सुनियोजित शहर, जटिल सिंचाई प्रणाली, और धार्मिक अनुष्ठानों का प्रमाण देता है।

इस खोज ने सऊदी अरब के इतिहास को एक नया दृष्टिकोण दिया है और यह सवाल उठाया है कि क्या प्राचीन काल में इस क्षेत्र में हिंदू सभ्यता का प्रभाव था। सऊदी अरब के हेरिटेज कमीशन और पुरातत्वविदों की मेहनत ने इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को विश्व के सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह खोज न केवल सऊदी अरब के लोगों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो हमें हमारे प्राचीन अतीत से जोड़ती है।[]

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