Article 370: is History Now CJI,आर्टिकल 370 अब इतिहास ;जज चंद्र चूड़,370 हटाने का फैसला सही

Article 370 Is History Now Cji, Article 370 Is Now History; Judge Chandra Chud, Decision To Remove 370 Is Right
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Article 370: is History Now CJI,आर्टिकल 370 अब इतिहास ;जज चंद्र चूड़,370 हटाने का फैसला सही

Delhi:(Reliable Media) अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर SC के फैसले की व्याख्या . भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 5 सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आज फैसला सुना दिया की 370 हटाने का सरकार का फैसला सही था.भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद इस साल 5 सितंबर को मामले में 23 याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे।

देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने सुबह 11 बजे ही इस मामले में फैसला पढ़ना शुरू किया। इस पीठ में सीजेआई के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। गौरतलब है कि सितंबर माह में लगातार 16 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ा. उन्होंने कहा कि भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के पास कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है, और प्रथम दृष्टया ऐसा कोई मामला नहीं है कि राष्ट्रपति के आदेश शक्ति का अनावश्यक प्रयोग थे।

सीजेआई का कहना है कि याचिकाकर्ताओं का तर्क – कि राष्ट्रपति शासन के मामले में संघ अपरिवर्तनीय कार्रवाई नहीं कर सकता – स्वीकार्य नहीं है।

जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता के विषय पर, सीजेआई चंद्रचूड़ ने दोहराया कि भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर ने कोई संप्रभुता बरकरार नहीं रखी। भले ही महाराजा हरि सिंह ने एक उद्घोषणा जारी की कि वह अपनी संप्रभुता बरकरार रखेंगे, उनके उत्तराधिकारी करण सिंह ने घोषणा की कि भारतीय संविधान राज्य में अन्य सभी कानूनों पर हावी होगा।

संक्षेप में, यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के बाद भारत में शामिल होने वाली हर अन्य रियासत की तरह विलय का प्रभाव है।

सीजेआई चंद्रचूड़ का कहना है कि भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है। हालाँकि राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद राष्ट्रपति के कार्यों की सीमाएँ हैं, इस मामले में, वे मान्य हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद राष्ट्रपति और संसद को राज्यपाल/राज्य विधानमंडल का पद संभालने में कोई बाधा नहीं है। सीजेआई का कहना है कि प्रथम दृष्टया (प्रथम दृष्टया) ऐसा कोई मामला नहीं है कि राष्ट्रपति के आदेश दुर्भावनापूर्ण (बुरे इरादे से) या शक्ति का अनुचित प्रयोग थे।

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र की तरफ से राज्य के लिए किए हर फैसले को चुनौती नहीं दे सकते हैं। पांच जजों के तीन अलग-अलग फैसले हैं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं का यह तर्क कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में अपरिवर्तनीय परिणामों के लिए कार्रवाई नहीं कर सकती, स्वीकार्य नहीं है।  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है। अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर पर केंद्र सरकार का फैसला बना रहेगा। पांच अगस्त 2019 का फैसला बरकार रहेगा। इसे नहीं बदला जाएगा। 

मामले में किसने-किसने रखे पक्ष?
16 दिन में सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं- हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करते हुए सुना था। वकीलों ने इस प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त 2019 के फैसले की संवैधानिक वैधता, पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता, 20 जून 2018 को जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाए जाने, 19 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और 3 जुलाई 2019 को इसे विस्तारित किए जाने सहित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे थे।

गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के चलते पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था।

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