महमूद गजनवी के आक्रमण: हिंदू नारियों की दासता की कथा और ऐतिहासिक सत्य

महमूद गजनवी (979-1030ई.) मध्य एशिया के गजनवी साम्राज्य के एक कुख्यात शासक थे, जिन्होंने 1001से 1027 ई. तक भारत पर कुल 17आक्रमण किए। ये आक्रमण मुख्य रूप से आर्थिक लूट के उद्देश्य से थे, लेकिन इनमें धार्मिक कट्टरता का भी रंग झलकता था।
गजनवी ने सोमनाथ मंदिर जैसे पवित्र स्थलों को लूटा, मूर्तियों को तोड़ा और अपार धन-सम्पदा के साथ लाखों लोगों को गुलाम बनाकर गजनी (आधुनिक अफगानिस्तान) ले गया। इन आक्रमणों में हिंदू पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को बेदर्दी से कैद किया गया, और कई को बाजारों में बेच दिया गया।
लेकिन एक लोकप्रिय कथा जो सोशल मीडिया और कुछ किताबों में प्रचलित है—वह गजनी में एक स्तंभ पर उकेरी गई शिलालेख ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार’ (हिंदुस्तान की बेटियां दो दीनार में नीलाम)—क्या सत्य है? इस लेख में हम इस घटना के ऐतिहासिक संदर्भ, साक्ष्यों और विवादों की पड़ताल करेंगे।
गजनवी के आक्रमण: लूट और दास व्यापार का काला अध्याय Mahmud Ghaznavi’s invasion: slavery of Hindu women
महमूद गजनवी के आक्रमण भारत के लिए एक अभिशाप सिद्ध हुए। इतिहासकारों के अनुसार, इन हमलों में उन्होंने न केवल सोना-चांदी, रत्न और मंदिरों की संपदा लूटी, बल्कि लाखों हिंदुओं को गुलाम भी बनाया। समकालीन फारसी इतिहासकार अल-उत्बी (महमूद के दरबारी इतिहासकार) अपनी किताब तारीख-ए-यामिनी में लिखते हैं कि 1008 ई. के आक्रमण में ही 20000 हिंदू कैदियों को गजनी ले जाया गया। कुल मिलाकर, विभिन्न स्रोतों से अनुमान है कि गजनवी के 17 आक्रमणों में लगभग 5लाख लोग (पुरुष, महिलाएं और बच्चे) गुलाम बनाए गए।
इनमें हिंदू महिलाओं की संख्या भी हजारों में थी, जिन्हें गजनी के बाजारों में बेचा जाता था।गजनी उस समय एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था, जहां गुलाम बाजार फल-फूल रहे थे। हिंदू कैदी—खासकर युवा महिलाएं—को ‘हिंदुस्तानी माल’ के रूप में बेचा जाता था।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इन महिलाओं को इतनी कम कीमत पर नीलाम किया जाता था कि यह हिंदुओं के अपमान का प्रतीक बन गया। लेकिन क्या यह संख्या चार लाख तक पहुंची? और क्या दो-दो दीनार (लगभग 10-12 ग्राम सोने के बराबर) में बिकीं?
आधुनिक शोध बताते हैं कि ये आंकड़े अतिरंजित हैं। वास्तविक संख्या हजारों में हो सकती है, लेकिन चार लाख का दावा समकालीन साक्ष्यों से मेल नहीं खाता।
रोती-बिलखती नारियां: एक मार्मिक चित्रण
हिंदू महिलाओं का अपने पतियों, भाइयों और पिताओं से रो-रोकर मदद मांगना, लेकिन करोड़ों हिंदुओं के बीच मुट्ठीभर मुस्लिम सैनिकों द्वारा उन्हें भेड़-बकरियों की तरह ले जाना—यह भावुक चित्रण उस समय की विभाजित राजनैतिक व्यवस्था को दर्शाता है।
11वीं शताब्दी में भारत में कोई एकीकृत राज्य नहीं था। हिंदू शाही राजवंश (जयपाल और आनंदपाल) ने प्रतिरोध किया, लेकिन अन्य राजा आपसी कलह में व्यस्त थे। महिलाओं ने भी संघर्ष किया—कुछ स्रोतों के अनुसार, हिंदू महिलाओं ने अपने आभूषण बेचकर सेना के लिए धन जुटाया।
फिर भी, कोई ‘अवतार’ या सामूहिक विद्रोह नहीं हुआ। यह इतिहास का एक दुखद सबक है: एकता की कमी ने आक्रमणकारियों को आसान शिकार बनाया।
गजनी पहुंचकर इन महिलाओं का क्या हुआ?
कई को घरों में दासियों के रूप में बेचा गया, कुछ को सैनिकों में वितरित किया गया। फारसी साहित्य में गजनी को ‘छोटा हिंदुस्तान’ कहा गया, क्योंकि वहां इतने हिंदू कैदी थे कि शहर हिंदू संस्कृति से रंग गया। लेकिन यह दासता केवल आर्थिक नहीं, अपमानजनक भी थी।गजनी का स्तंभ: किंवदंती या मिथ्या?अब आते हैं उस प्रसिद्ध शिलालेख पर। कथा के अनुसार, गजनी में एक स्थान पर मुसलमानों ने एक स्तंभ बनाया, जहां लिखा है: ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार’—यानी हिंदुस्तान की बेटियां दो दीनार में नीलाम हुईं। यह दावा सोशल मीडिया पर वायरल है, खासकर 2015से, और हाल ही में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद फिर उछला। लेकिन तथ्य-जांच एजेंसियां जैसे एएफपी इसे झूठा सिद्ध करती हैं।
वास्तविकता यह है कि गजनी में १२वीं शताब्दी का एक मीनार (बह्राम शाह का मीनार) है, जिसकी तस्वीरें इस कथा से जोड़ी जाती हैं। लेकिन विद्वान जैसे मनन अहमद (कोलंबिया यूनिवर्सिटी) और वायोला एलेग्रांजी (घजनवी काल की विशेषज्ञ) कहते हैं:शिलालेख अरबी में हैं, फारसी में नहीं।
वे बह्राम शाह (महमूद के वंशज) की प्रशंसा करते हैं: “ईश्वर के नाम से… महान सुल्तान, इस्लाम का राजा…”
कोई भी घजनवी या घुरिड स्मारक महिलाओं की नीलामी का उत्सव नहीं मनाता। ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान’ वाक्यांश फर्जी है।
यह कथा शायद 19 वीं-20 वीं शताब्दी के राष्ट्रवादी लेखकों से प्रेरित है, जो आक्रमणों के अपमान को उजागर करने के लिए अतिरंजना करते थे। लेकिन ऐतिहासिक सत्य यह है कि दास बाजार अस्तित्व में थे, और हिंदू महिलाओं की बिक्री हुई—बस यह विशिष्ट शिलालेख नहीं।सबक और चिंतन: इतिहास से सीखमहमूद गजनवी के आक्रमणों ने भारत को आर्थिक रूप से कमजोर किया और सांस्कृतिक घाव दिए। लेकिन यह भी सत्य है कि हिंदू समाज ने बाद में प्रतिरोध सीखा—पृथ्वीराज चौहान जैसे योद्धाओं ने घूरिडों को रोका। आज, जब हम इस कथा को साझा करते हैं, तो याद रखें: इतिहास दर्द देता है, लेकिन वह एकता का संदेश भी।
महिलाओं की दासता का यह काला अध्याय हमें याद दिलाता है कि समाज की रक्षा सामूहिक जिम्मेदारी है। क्या हमने उन रोती बिलखती नारियों की पुकार सुनी? शायद अब समय है कि हम इतिहास से सीखें, न कि केवल शोक मनाएं।(संदर्भ: अल-उत्बी की तारीख-ए-यामिनी, एएफपी फैक्ट चेक, और विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथ। यह लेख तथ्यों पर आधारित है, अतिरंजनाओं से परे।)