हरिजन शब्द का उपयोग करना पड़ेगा भारी ,

Harijan spoke who spoke in rotten jail
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सुप्रीम कोर्ट ने हरिजन लिखने बोलने को आपराधिक माना

अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिए हरिजन शब्द को लिखने बोलने पर न्यायालय ने प्रतिबंध किया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय शास्त्री भवन नई दिल्ली द्वारा जारी एक पत्र के अनुसार आधिकारिक रूप से अनुसूचित जातियों के संबंध में हरिजन शब्द के उपयोग पर पाबंदी के निर्देश भी दिए गए है।

बावजूद इसके हरिजन शब्द को उपयोग में लिया जा रहा है। जिससे राष्ट्रीय जय भीम सैनिक संगठन खासा नाराज है। वहीं इस वर्ग के शिक्षित लोगों ने भी इसका कड़ा विरोध करते हुए निंदा की है।

इधर संगठन के मीडिया प्रभारी अंतिम सिटोले ने हाईकोर्ट के आदेश की छायाप्रति दिखाते हुए बताया कि हरिजन शब्द के प्रतिबंध को लेकर कानून तो बन गया है। परन्तु कानून का पालन कराने वाले कानून के रखवाले ही इस शब्द का उपयोग कर रहे हैं। राशन कार्ड, एफआईआर, आधार कार्ड, परिचय पत्र, डाक पत्र आदि पर जाति व स्थान की जगह हरिजन मोहल्ला, बस्ती लिखा जा रहा है। धरमपुरी न्यायालय के बाहर लगे एक बोर्ड पर भी इस शब्द को लिख दिया गया है।

इधर सिटोले यह भी बताया कि जिस न्यायालय से न्याय की आम आदमी आस रखता है। उस न्यायालय के बाहर ही यह शब्द लिखा हो तो। एससी वर्ग के लिए अपमान से बड़ी बात क्या होगी।

संगठन कराएगा कानूनी कार्रवाई


इधर संगठन कार्यकर्ता धर्मेंद्र लिमनपुरे, श्रीकांत सोलंकी, मनीष खांडे, राकेश गजभिये, सचिन जाधव, ऋषभ साकले आदि ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है कि वही निवेदन किया है कि एससी वर्ग को हरिजन शब्द बोलकर-लिखकर अपमानित किया जा रहा है। अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिए शासकीय व गैर शासकीय दस्तावेज, प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा या सार्वजनिक मंच से नेताओं के भाषण इत्यादि में हरिजन शब्द का उपयोग किया जाता है तो उपरोक्त आदेशों का सहारा लेते हुए संबंधित के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

जाति व स्थान की जगह हरिजन मोहल्ला, बस्ती लिखा जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने हरिजन लिखने बोलने को आपराधिक माना है

सुप्रीम कोर्ट ने भी हरिजन शब्द को आपराधिक माना है। केंद्र व केरल राज्य की सरकार भी अलग-अलग अध्यादेश द्वारा प्रतिबंध लगा चुकी है। हरिजन शब्द के प्रयोग पर संशोधित अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार अधिनियम व भारतीय  दंड संहिता की धाराओं में केस दर्ज हो सकता है, व जाना पड़ सकता है जेल।हरिजन शब्द का प्रयोग करने वाले लोगों व सरकारी काम काज में इसका इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हो सकता है। महात्मा गांधी द्वारा भारत के अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय के लोगों के लिए उपयोग किए गए शब्द हरिजन का प्रयोग करना अब महंगा पड़ सकता है। 

नेशनल एलाइंस फॉर दलित हुमन राइट्स के संयोजक व दलित राइटस एक्टिविस्ट, अधिवक्ता रजत कल्सन ने बताया कि महात्मा गांधी द्वारा देश के अनुसूचित जातिव जनजाति वर्ग के लिए इज़ाद किए गए शब्द हरिजन का शुरू से ही विरोध रहा है। उन्होंने कहा कि भारत का अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय शुरू से ही इस शब्द को अपने लिए अपमान जनक मानता आ रहा है तथा इस पर रोक लगाने के लिए आजादी के बाद से ही आवाज उठनी शुरू हो गई थी।

सरकारी काम काज में इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाने के आदेश

भारत की राष्ट्रपति ने भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के पत्र दिनांक 22-11-12 व क्रमांक 17020/64/2010 / SCD (RL CELL) के मार्फत सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को सर्कुलर जारी कर हरिजन शब्द के सरकारी काम काज में इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाने के आदेश दिए हुए हैं। इसी के साथ सन 2008 में केरल सरकार भी हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर पूर्णतया रोक लगा चुकी है।

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की मोहर भी लग गई है । सुप्रीम कोर्ट ने एक ताजा मामले क्रिमिनल अपील नम्बर 570/17 में मंजू सिंह बनाम ओंकार सिंह आहलूवालिया में 24 मार्च 2017 को आरोपी ओंकार सिंह अहलूवालिया द्वारा हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर दर्ज हुए मुकदमे में हाई कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार की धारा 18 में अग्रिम जमानत पर प्रतिषेध के बावजूद जमानत दिए जाने के आदेश को खारिज करते हुए हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी टिप्पणी की तथा बैंच ने कहा किइस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरिजन शब्द का इस्तेमाल उच्च जाति के लोगों द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों को नीचा दिखाने व अपमानित करने के लिए किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हरिजन शब्द का प्रयोग अपमान जनक के साथ-साथ आपराधिक भी है, इसलिए इस तरह के मामलों में अपराधी को अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हरिजन शब्द का इस्तेमाल जानबूझकर एक जाति विशेष को नीचा दिखाने व अपमानित करने के लिए किया जा रहा है ।

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा किदेश का नागरिक होने के नाते हमें एक बात अपने दिल और दिमाग में रखनी चाहिए कि हम देश के किसी भी नागरिक को इस तरह की भाषा का प्रयोग कर नीचा दिखाना या अपमानित नहीं कर सकते अगर ऐसा करते हैं तो यह आपराधिक होगा।इन दिनों पुलिस व सरकारी अधिकारियों द्वारा सरकारी कामकाज में भारत सरकार के उपरोक्त निर्देश व सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त जजमेंट के बावजूद हरिजन शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है तथा सरकारी अधिकारी तथा लोग जानबूझकर सरकारी आदेशों व कोर्ट के आदेशों की आपराधिक अवहेलना कर रहे हैं ।

उन्होंने कहा कि यदि उनके संज्ञान में इस तरह का कोई मामला आता है कि सरकारी या पुलिस विभाग का कोई कर्मचारी या अधिकारी अपने सरकारी कामकाज में हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहा है तो वह उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराने का काम करेंगें। इस शब्द का इस्तेमाल करने पर उसके खिलाफ एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1) (आर) (एस) (यू) व आईपीसी की धारा 295 A व 505 के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है तथा इसमें जेल भी जाना पड़ सकता है तथा अपराध साबित होने पर आरोपी को कम से कम 5 साल तक की सजा भी हो सकती है।

दलित समाज को संदेश

उन्होंने दलित समाज को संदेश दिया कि यदि उनके मामले में इस तरह का कोई मामला संज्ञान में आता है तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का काम करें ताकि इस तरह के शब्द के प्रयोग करने वालों पर लगाम लगाई जा सके। केंद्र सरकार ने 1990 में कल्याण मंत्रालय (अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) की एक अधिसूचना को फिर से जारी किया है, जिसमें दलित वर्गों को अनुसूचित जाति के रूप में संबोधित करने का निर्देश है।दरअसल, मोहन लाल माहौर ने दलित शब्द पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि संविधान में इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं है।

इस वर्ग से जुड़े लोगों को अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के रूप में ही संबोधित किया गया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पराशर का कहना है कि यह आदेश मध्य प्रदेश में लागू हो चुका है।सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने तर्क दिया है कि 10 फरवरी, 1982 को गृह मंत्रालय ने राज्यों को दिये निर्देश में कहा था कि अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करते समय संबंधित पत्र में ‘हरिजन’ शब्द हर्गिज ना लिखा जाए। साथ ही राष्ट्रपति के आदेश के तहत ‘अनुसूचित जाति’ के रूप में उनकी पहचान का उल्लेख करने को कहा था। 18 अगस्त 1990 में मंत्रालय ने राज्य सरकारों से शेड्यूल्ड कास्ट (एससी) के अनुवाद के रूप में  में ‘अनुसूचित जाति’ उपयोग करने का अनुरोध किया था।

जबकि व्यापक दलित समुदाय इस शब्द का पक्षधर है। इस संबंध में  दलित विचारक चंद्र भान प्रसाद कहते हैं कि “लोग नहीं चाहते हैं कि उन्हें अनुसूचित जाति का कहा जाए बल्कि ‘दलित’ ही कहा जाए। सरकार का संविधान के हवाले से कहना लोगों को भ्रम में डालना है। असल बात यह है कि दलित शब्द से सरकार डरती है।

”केरल के सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक सनी एम. कपिकड ने कहा कि “इस शब्द पर प्रतिबंध लगाकर, वे दलितों द्वारा बनायी गयी बड़ी जगह और ताकत को दूर करना चाहते हैं। हमारे लिए दलित का अर्थ टूटे, बिखरे, निराश और उत्पीड़ित समाज से है।”इसी प्रकार, जाने माने लेखक और दलित कार्यकर्ता एएस अजीत कुमार मानना है कि “दलित समाज पहले ही इनकी जगह हरिजन और गिरिजन जैसे शब्दों को रिप्लेस करने की कोशिश को राजनीतिक और विचारधारात्मक आधार पर खारिज कर चुका है। दलित आह्वान से हमारा समुदाय एक आवाज देकर सड़कों पर हकों की लड़ाई के लिए आता है, सरकारें नहीं चाहती हैं कि उनमें एकता दिखे।”

सामाजिक कार्यकर्ता Rakesh Isfahan भी कहत हैं “किसी भी राज्य को केंद्र की सोच के अनुसार चलने की जरूरत नहीं है। लेकिन इसके उलट, केरल के बाद राजस्थान और अब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों ने शासनादेश लाकर कागजों और व्यवहार में दलित शब्द को बैन किया है।”बोलचाल में अक्सर लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सुना जाता रहा है। लेकिन अब बोलचाल और लिखित में दलित शब्द के प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को लिखित आदेश दिए हैं कि अब सरकारी स्तर पर या कहीं भी दलित शब्द का प्रयोग वर्जित होगा।यही नहीं सरकारी पत्रावली से लेकर किसी भी दस्तावेज में दलित शब्द का प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई है। केंद्र ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के 21 जनवरी को दिए आदेशानुसार सरकारी दस्तावेजों और अन्य जगहों पर दलित शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई थी।

https://www.youtube.com/watch?v=vX_Vd4_TQLk
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