#आर्यन_अफवाहः Dr Tribhuwan Singh

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Photo Credit Tribhuwan Singh Facebook Profile

अभी तक एकमात्र व्यक्ति जिसने उस #आर्यन_अफवाहः को स्टेप by स्टेप डिकोड किया है, जिसको विलियम जोंस, मैकाले, और मैक्समूलर जैसे षड्यंत्रियों ने रचा था, वह हैं प्रदोष अइछ।

फैंटेसीबाज यूरोपीय विद्वानों द्वारा रचे गए अफवाहों का शिकार हुए – बाल गंगाधर तिलक, रामधारी सिंह दिनकर,  अम्बेडकर, फुले और पेरियार।

यही नहीं पूरी संविधान सभा उस अफवाहः की शिकार हुयी।

 क्यों? ऐसा संभव कैसे हुवा?

उत्तर है:

“क्योंकि ये सब मैकाले के उस 30- सालाना शिक्षा योजना की उपज थे – जिसका नक्शा उसने 1836 में खींचा था – इस “शिक्षा का उद्देश्य होगा, बिचौलियों का एक वर्ग तैयार करना, जो रंग और रक्त से भारतीय, स्वाद, चरित्र, नैतिकता, और बुद्धि से नग्रेज हों।

उन्हीं के ऊपर यह उत्तदायित्व होगा कि वे हमारे वैज्ञानिक शब्दों को अपने देशी भाषा मे अनुवादित करके, उसे आम जन तक पहुचायें”।

इस शिक्षा के शिकार लाखों लोग हुए लेकिन किसी ने भी अंग्रेजो के चंगुल में फंसकर देश विरोधी, समाजविरोधी, धर्मविरोधी और विधर्म परस्त ग्रन्थ नहीं रचे – सिवा फुले, अम्बेडकर, पेरियार और संविधान सभा के।

अंग्रेजो के द्वारा रचे गए भारत और हिन्दू विरोधी कुसूचनाओं को विज्ञान के नाम पर शिक्षा संस्थाओं में आज भी पढ़ाया जा रहा है – उस फर्जी विज्ञान को #इंडोलॉजी का नाम दिया गया था।

यदि लोजी शब्द किसी के साथ जुड़ जाय तो मैकाले के मानस पुत्रों में उसके आगे चरण वंदन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प न था।

इसीलिए ऐसा संभव हुआ”।

अफवाह के खण्डन के लिये पिछले कुछ दशकों में लोगों ने विज्ञान की शरण लिया – यथा जेनेटिक स्टडी, पुरातत्व।

यह उसी परम मूर्खताओं में एक है जो आज तक विद्वत जन करते आये हैं।

अफवाह का खंडन विज्ञान द्वारा – निश्चित तौर पर मैकाले आज भी इनके मनोमस्तिष्क को नियंत्रित कर रहा है।

अफवाह या कहानी – के सच को जानने के लिये एक मात्र वैज्ञानिक तरीका है – अफवाहः को रचने वाला कौन था? क्या उसकी अकडेमिक पृष्टभूमि इतनी सुदृढ थी कि जो कहानी वह जिन लोगों के बारे में लिख रहा है, वह उन लोगों से परिचित भी है ? परिचित है तो कितना? क्या उसे आर्यन शब्द का अर्थ भी पता है? क्या ऐसा कोई शब्द उस भाषा में है भी या नहीं – जिस भाषा के बारे में वह कहानी गढ़ रहा है? उस भाषा में इससे मिलता – जुलता कोई शब्द है भी तो उसका क्या वही अर्थ है, जो उसने और मैकाले के अनुयायियों ने समझा है? और सबसे बड़ी बात जो अफवाहः वह रच रहा है उसका स्रोत क्या है?

मैक्समुलर मात्र एक हाई स्कूल पास जर्मन, जिसे बड़ी शिफारिश के बाद एक दो कौड़िया नौकरी मिली ईस्ट इंडिया में। वह कैसे प्रोफेसर डॉ मैक्समुलर बना, और इतना लोकप्रिय हो गया कि भारत के मैकाले मानस पुत्रों ने उसके सम्मान में  #मैक्समुलर_भवन बनवा दिया, अवश्य ही पूरा सिस्टम इस कार्य में संलग्न था।

मात्र मैट्रिक पास व्यक्ति प्रोफेसर कैसे बना? गूगल भी उसे संस्कृत का नहीं टेलेरियन प्रोफेसर कहता है? यह क्या है? क्या अर्थ होता है इस शब्द का?

आज तक इस तरह के प्रश्न उठाये नहीं गए। प्रदोष एच ने प्रमाण के साथ इन विषयों पर शोध किया है।

उस अफवाह को किस तरह #विज्ञान बनाया गया, जिसका आज तक खण्डन जारी है, प्रोदोष अइछ ने उसकी गहराई में जाकर पोल खोल किया है।

उसे पढ़ें।

यदि साहस धैर्य और विवेक हो तो।

साथ में उसे भी पढ़ें – जो अफवाहों के शिकार डॉ आंबेडकर ने उस अफवाह को खारिज करते करते उससे भी बड़ी अफवाहः रच डाली – #WhoWereTheShudras, जिसका खण्डन 64 वर्ष उपरांत किया गया है।

Disclaimer लेखक डॉ त्रिभुवन सिंह के निजी विचार हम सहमत अथवा असहमत नहीं .

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